Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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३२)
सिद्धान्तसारः
(२.१०८
दशलक्षाधिककोटी पदानि प्रतिपादितम् । संख्या' यासंख्यविज्ञानस्तत्त्वविद्भिर्मनीषिभिः ॥ १०८ कल्याणनामधेयं तद्यत्कल्याणप्ररूपकम् । षड्विंशतिश्च कोटीनां अहंदादिमहात्मनाम् ॥ १०९ कोटीत्रयोदश प्राज्ञैः प्राणावायं पदानि तत् । प्राणापानविभागायुर्वेदमन्त्रादिवादकम् ॥ ११० छन्दोऽलङ्कारशास्त्राणां क्रियाणां प्रतिपादकम् । क्रियासाधनमाम्नातं नवकोटिपदप्रमम् ॥१११ लोकानसाधनानेकव्याकर्णनपरं वरम् । कोटीद्वादशपञ्चाशल्लक्षा लोकाग्रबिन्दुकम् ॥ ११२ निगद्य पदसंख्यानं पूर्वाणां गणितप्रियैः । अशेषाणाममीषां च वस्तुसंख्या निगद्यते ॥ ११३ दश चतुर्दशाष्टौ च क्रमादष्टादशाधिका । द्वादश द्वादश प्रास्ततः षोडश विंशतिः ॥११४ त्रिंशत्पञ्चदश ख्याता वस्तुसंख्या दशस्वपि । त्रिलोकाग्रपदप्राप्तिहेतुभूता मनस्विभिः ॥ ११५ ततः सर्वेषु पूर्वेषु दशकं दशकं मतम् । वस्तूनां वस्तुतः प्राज्ञैर्यावदन्त्यं भवेत्पुनः ॥ ११६ सर्वेषामिह पूर्वाणां वस्तुसंख्या समासतः । शतं च नवभिः पंच गदितागमकोविदः ॥ ११७
___ कल्याण नामक पूर्वमें तीर्थकरादिके गर्भावतारादि कल्याण, उनके कारण पुण्यकर्म, षोडश भावना आदिका तथा चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्रोंके चारका, ग्रहण, शकुन आदिके फलोंका वर्णन है। इसकी पदसंख्या छब्बीस कोटि प्रमाण है ॥ १०९॥
प्राणावायपूर्वकी पदसंख्या विद्वानोंने तेरा कोटि प्रमाण बताई है । इसमें प्राणापानोंका विभाग तथा आयुर्वेद-मंत्रवादोंका वर्णन है ॥ ११० ॥
क्रियाविशालपूर्वमें छंदःशास्त्र और अलंकार शास्त्रका विवेचन है, तथा पुरुषोंकी बाहत्तर कला, स्त्रियोंकी चौसठ कला शिल्पादि विज्ञान, गर्भाधानादिक क्रिया, तथा नित्यनैमित्तिक क्रियाओंका वर्णन है । इसकी पदसंख्या नौ कोटि प्रमाणकी है ।। १११ ॥
लोकाग्रबिन्दुपूर्वमें लोकाग्र-मोक्षको साधने के कारण और मोक्षके सुखका वर्णन किया है तथा लोकका स्वरूप, छत्तीस परिकर्म, आठ व्यवहार, चार बीज, आदिका वर्णन है । इसकी पदसंख्या बारह कोटि पचास लक्ष प्रमाणकी है ।। ११२ ॥
जिनको गणित प्रिय है ऐसे विद्वानोंने पूर्वोकी पदसंख्या इस प्रकार कही है। अब इन समस्त पूर्वोमें जो वस्तुसंख्या है, उसका वर्णन वे करते हैं । ११३ ॥
( पूर्वोकी वस्तुसंख्या )- उत्पादपूर्वसे विद्यानुवाद पूर्वतक दसपूर्वोमें वस्तुओंका जो प्रमाण क्रमसे विद्वानोंने कहा है वह इस प्रकार है-दस, चोदह, आठ, अठारह, बारह, बारह, सोलह, बीस, तीस, पंद्रह । तदनंतर आगेके चार पूर्वोमें त्रैलोक्यके अग्रकी-मोक्षकी प्राप्तिमें कारणभूत ऐसी वस्तुसंख्या विद्वानोंने दस, दस, दस, दस कही है। चौदह पूर्वोमें १०, १४, ८, १८, १२, १२, १६, २०, ३०, १५, १०, १०, १०, १०, कुल वस्तुसंख्या एकसौ पिचानबै है। ऐसे वस्तु नामक अधिकार चौदह पूर्व में कहे हैं ॥ ११४-११७॥
१ आ. संख्यया २ आ. क्रियाविशालमाख्यातं ३ आ. व्यावर्णन ४ आ. संख्यां तां ५ आ. धिकादश ६ आ. मनस्विनाम्
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