Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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१५२)
सिद्धान्तसार:
(६. ७६
द्वितीयायां मृता यान्ति सरटाः पक्षिणः पुनः । तृतीयामेव गच्छन्ति चतुर्थ्यामुरसर्पकाः ॥ ७६ सिंहाश्च हस्तिनो यान्ति पञ्चम्यां च तथा स्त्रियः । षष्ठ्यामेव प्रबध्नन्ति नारकं कर्म दुस्तरम् ॥७७ मनुजेषु पुमांसश्च तथा मत्स्यादयः परे । सप्तम्यां च मृता यान्ति कर्मणा नारकेन च ॥ ७८ सप्तम्या निःसृता जीवा मानुषत्वं न जातुचित् । लभन्ते च भवन्त्येव तिर्यञ्चः केवलं पुनः ॥७९ षष्ठीतो निर्गता जीवा जायन्तेऽनन्तरे भवे । मानुषा यदि ते नैव संयमेन विभूषिताः ॥ ८० संयमोऽपि भवत्येव पञ्चम्या आगतस्य च । न कर्मान्तक्रिया तस्य दुःखभावविभाविनः ॥ ८१ चतुर्थ्या निर्गतस्यास्य निर्वृतिर्जायते क्वचित् । न जातु तीर्थकारित्वं तथा शक्तेरभावतः ॥ ८२ तीर्थकारित्वमप्यस्य जीवस्य जायते ध्रुवम् । तृतीयाया द्वितीयायाः प्रथमानिर्गतस्य च ॥ ८३ नरकान्निर्गतानां न तस्मिन्नेव भवे भवेत् । चक्रित्वं वासुदेवत्वं बलदेवत्वमित्यपि ॥ ८४ आहारोऽपि भवेत्तेषामाभोगविनिवृत्तितः । उच्छ्वसन्ति च ते सर्वे भस्त्रायन्त्रमिवानिशम् ॥८५
वे पहले नरकमें उत्पन्न होते हैं । वे दूसरे तीसरे आदि नरकभूमिमें उत्पन्न नहीं होते । गिरगिट नामक प्राणी मरणोत्तर दूसरे नरककी भूमिमें उत्पन्न होते हैं । पक्षी जीव तीसरे नरकतक उत्पन्न होते हैं । इसके आगे वे उत्पन्न नहीं होते । छातीसे चलनेवाले गोह आदि प्राणी चौथे नरकतक जाते हैं । उसके आगे के नरकमें वे उत्पन्न नहीं होते। सिंह और हाथी ये प्राणी पांचवे नरकमें उत्पन्न होते हैं । अर्थात् पहलेसे पांचवे नरकतक उत्पन्न होते हैं। स्त्रियाँ अर्थात् मनुष्य - स्त्रियाँ छठे नरकमें उत्पन्न होती हैं । अर्थात् छठी नरकभूमितकही पापसे उत्पन्न होनेकी योग्यता उनकी हैं | सातवे नरकमें उनका जन्म नहीं होता है । मनुष्योंमें पुरुष तथा तिर्यंचों में मत्स्यादिक प्राणी सातवे नरकमें उत्पन्न होते हैं अर्थात् प्रथम नरकसे सातवे नरकतक वे उत्पन्न होते हैं ।। ७५- ७८ ।।
( कौनसी नरक भूमीसे निकले हुए जीव कौनसी अवस्थाको प्राप्त होते हैं? उत्तर ) - सातवी नरकभूमी से निकले हुए नारकी जीव मध्यलोकमें अनंतरभवमें मनुष्यपर्याय कदापि धारण नहीं करते हैं अर्थात् सातवे नरकमेंसे निकले हुए जीव मध्यलोकमें केवल तिर्यंचोंमेंही जन्म धारण करते हैं । छठी पृथ्वीसे निकले हुए जीव अनंतरभवमे यदि मनुष्यपर्याय धारण करें तो नियमसे,
भूषित नहीं होते हैं। पांचवे नरकसे निकला हुआ जीव मनुष्य होकर संयमभी धारण कर सकता है । परंतु संक्लेशपरिणामोंसे संस्कृत होनेसे उसको कर्मक्षय न होनेसे मोक्ष प्राप्त नहीं होता है | चौथे नरकसे निकले हुए जीवको क्वचित् मोक्षप्राप्ति होती हैं । परंतु तीर्थकरना उसको प्राप्त नहीं होता । क्योंकि तीर्थकर होनेकी शक्ति उस जीवमें प्रगट नहीं होती है । जो जीव तीसरा नरक, दूसरा नरक और पहले नरकसे निकलते हैं उनको तीर्थकरपदकी प्राप्ति होती है । नरकसे निकले हुए जीवोंको उसी भव में चक्रवर्तिपद, वासुदेवपद और बलदेवपदभी प्राप्त नहीं होता है । नारकियोंको आहारभी होता है परंतु उनको कभी तृप्ति नहीं होती हैं । और वे हमेशा भस्त्राके समान श्वासोच्छ्वास करते हैं ।। ७९-८५ ॥
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