Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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१८८)
सिद्धान्तसारः
(८. ९
सूर्याचन्द्रमसौ तस्माद्ग्रहनक्षत्रतारकाः । ज्योतिःस्वभावरूपत्वाज्ज्योतिष्काः कथिता जिनः ॥९ तारकाणां विमानानि शतानि सप्तसंयुताः । नवतिश्च जिनैः प्रोक्ता योजनानि महीतलात् ॥१० अस्मादेव समाद्भुमिविभागाद्योजनानि च । नवत्यामा शतान्यध्वं सप्त सन्ति सुतारकाः ॥११ दर्शव योजनान्यूध्वं ततः सूर्याश्चरन्ति ते । ततोऽशीति परित्यज्य तवं शीतभानवः ॥ १२ नक्षत्राणि च विद्यन्ते योजनानां त्रये ततः । योजनत्रितयं गत्वा ततोऽप्यूवं बुधाश्रयाः ॥ १३ योजनत्रितये शुक्रास्तदूध्वं त्रितये पुनः । बृहस्पतिविमानानि विद्यन्ते शोभनानि च ॥ १४ अङगारकास्तदूर्ध्व ते योजनानां चतुष्टये। विचरन्ति ततोऽप्यूवं तथैते व शनैश्वराः ॥ १५ ज्योतिर्ग्रहगणाकीर्णप्रदेशो नभसो मतः । दशाधिकशतं तावद्योजनानां स विस्तरात् ॥ १६ तिर्यवपुनः स विज्ञयस्तिर्यग्लोकप्रमाणतः । मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयस्ते नमण्डले ॥ १७ एकविंशतिसंयुक्ताः शतकादशयोजनैः । मेरुं त्यक्त्वा भ्रमन्त्यत्र ज्योतिष्का भ्रमणान्विताः ॥१८ 'आभियोगिकदेवौघेरुह्यमानविमानकैः । तैरेव क्रियते सर्वः कालोऽयं व्यावहारिकः ॥ १९
(ज्योतिष्क देवोंके अवान्तर भेद । ) - सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारका ये पांच प्रकारके देव ज्योतिःस्वभाववाले होनेसे ज्योतिष्क देव कहे जाते हैं । सूर्य, चंद्र, ग्रह- शुक्र, बुध, अश्विनी आदिक संज्ञाविशेष नामकर्मोदयसे उत्पन्न होते है, ऐसा जिनेश्वरोंने कहा है ।। ९ ।।
तारकाओंके विमान इस समान भूमिभागसे ऊपर सातसौ नब्बे योजन आकाशमें ऊंचे जानेपर सुशोभित हैं ऐसा जिनेश्वरोंने कहा हैं ॥ १०-११ ।।
इनके ऊपर दश योजन जानेसे सूर्य भ्रमण करते हैं । तदनन्तर अस्सी योजन पुनः ऊपर जानेपर चन्द्र भ्रमण करते हैं। उनके ऊपर तीन योजन जानेपर नक्षत्र फिरते हैं । पुनः तीन योजनोंपर जानेसे बुधोंके स्थान हैं । पुनः तीन योजनोंपर शुक्र हैं । पुनः तीन योजनोंपर बृहस्पतिके विमान हैं। उनके ऊपर चार योजन क्षेत्र जानेसे अंगारक - मंगल भ्रमण करते हैं । उसके ऊपर चार योजन जानेसे शनैश्वर विहार करते हैं। इस प्रकार ज्योतिष्क देवसमूहसे आकाशप्रदेश व्याप्त हुए है, अर्थात् एकसौ दस योजनप्रमाणका आकाश इन्होंने व्याप्त किया है। इतने आकाशके विस्तारमें ज्योतिर्गण है । तथा आसमन्तात् तिर्यग्लोकप्रमाण आकाशमें ज्योतिमंडल है। ये सब ज्योतिष्क देव मंडलाकारसे मेरुको प्रदक्षिणा देते हैं और इनका घूमना सतत चलता है। ये ज्योतिष्क देव ग्यारह सौ इक्कीस योजनतक मेरुको छोडकर उसके आसपास भ्रमण करते है ॥ १२-१८ ॥
आभियोग्य देव, ज्योतिष्क देवोंके - सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र और तारकाओंके विमान लेकर घूमते हैं तथा वे ही सर्व व्यावहारिक काल समय, आवली, घटिका, मुहूर्त, प्रहर, दिन, पक्ष, मास आदिक रूप कालको उत्पन्न करते हैं ॥ १९ ॥
१ आ. मुक्त्वा २ आ. भ्रमन्त्येते ३ आ. आभीतियोगिकैर्देवै: ४ आ. वैवहारिक:
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