Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen  Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 276
________________ -१०.७१) सिद्धान्तसारः हरिदडाकुरगर्ताम्बुमृत्तिकाजन्तुसङकुले । पथि गच्छन्विशुद्धः स्यान्मार्गाभावे प्रयत्नतः॥ ६४ विद्यमानेऽपि चेन्मार्गे तानेव यदि लडन्ते । प्रमादाल्लभते दण्डं कल्याणपञ्चकं यतिः ॥ ६५ ज्ञानादिमदमत्तो यः स्वयूथ्यानपमन्यते । पञ्चकल्याणतः शुद्धिस्तस्यावश्यं प्रजायते ॥ ६६ क्षणध्वस्तकषायो योऽमिथ्याकाराद्विशुद्धयति । अहोरात्रेण कल्याणं मासिकं लभते ततः॥ ६७ तर्कव्याकरणादीनां ज्योतिर्गणितछन्दसां । महाकाव्यादिशास्त्राणां शिक्षायै यदि सेवते ॥ ६८ दर्शनज्ञानचारित्रत्रयं पार्श्वकर्वातनः । मिथ्याकारो मतस्तस्य पञ्चकल्याणमन्यथा ॥ ६९ मार्यमाणान्विलोक्यासून्पञ्चकं लभते नरः। भिन्नमासोऽथवानिदाम्रियमाणान्सरोगिणः ॥७० यूकादिमत्कुणादीनां धारणे स्यात्प्रतिक्रमः । तैश्च क्रीडापरस्यास्ति शुद्धिः कल्याणपञ्चकात् ॥७१ जिस मार्ग में हरे अंकुर ऊगे हुए खड्डे हैं, पानी, किचड और जन्तु है, ऐसे मार्गसे मुनि यदि प्रयत्नपूर्वक यानी जीवोंका रक्षण करते हुए दूसरा निर्जन्तुक मार्ग न हो तो गमन करें वह विशुद्ध प्रायश्चित्त योग्य नहीं ॥ ६४ ॥ ____ और वैसा विशुद्ध मार्ग होनेपरभी यदि मुनि अंकुर, पानी, जंतु आदिको उल्लंघते हुए गमन करें तो प्रमादगमन करनेसे कल्याणपंचक नामका प्रायश्चित्त ग्रहण करें ॥६५॥ ( ज्ञानादिमदसे सार्मिकका अपमान करनेसे प्रायश्चित्त ।)- ज्ञानादि गर्वसे सार्मिकोंका अपमान करनेवाले मुनिकी 'पंच कल्याण' प्रायश्चित्तसे शुद्धि अवश्य होती है ॥६६॥ ( कषाय करनेवालेको प्रायश्चित्त । )- कषाय उत्पन्न होकर जल्दी यदि नष्ट हो जावेगा तो वह मुनि मिथ्याकारसे शुद्ध होता है । यदि अहोरात्रतक कषाय रहेगा तो कल्याणपंचकल्याण प्रायश्चित्त और अहोरात्रसेभी अधिक कालतक कषाय रहेंगे तो 'मासिक' प्रायश्चित्त है ।। ६७ ॥ (तर्कादि अध्ययन पावस्थादि मुनियोंसे करनेसे प्रायश्चित्त।)- तर्क, व्याकरणादिक, ज्योतिष, गणित, छंदःशास्त्र महाकाव्यादि शास्त्रोंका अध्ययन दर्शनज्ञानचारित्रके सन्निध रहनेवाले पार्श्वस्थ मुनिके पास यदि किया जायेगा तो उसका प्रायश्चित्त ' मिथ्याकार ' है। अन्यथा पार्श्वस्थ मुनिसे भिन्न अन्य कोई अन्यधर्मी साधुके पास अध्ययन करें तो 'पंचकल्याण' प्रायश्चित्त धारण करना चाहिये ॥ ६८-६९ ॥ (प्राणीको मारते हुए जो देखें तो वह प्रायश्चित्ताह हैं। )- कोई प्राणीको मारता है और कोई मुनि उनको देखता है तो उसको कल्याणपंचक प्रायश्चित्त है । और मरते हुए रोगीको कोई मुनि देखे तो भिन्नमास प्रायश्चित्त उसको है अथवा यदि वह निंदा करें तो दोषरहित होता है ॥ ७० ॥ जू, खट्मल आदिक छोटे जन्तुओंको मुनि पकडे तो प्रतिक्रमणसे शुद्ध होता है। और यदि वह मुनि उनसे क्रीडा करेगा तो कल्याणपंचकसे उसकी शुद्धि होती है ।। ७१ ॥ आ. भां. १ सूरिसूर्यो न दूष्यति । S. S. 32 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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