Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen  Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 305
________________ २७८) सिद्धान्तसारः (११. १०० अप्यत्यन्तकलाकलापकुशलाः सम्प्राप्य द्वित्रान्भवान् । सौख्येनाशु विशन्ति वैभवयुताः सिद्धः पुरं सुन्दरम् ॥ १०० यो जिनशासनभक्ति मनसा वचसा च कायतो वापि । कुरुते तस्य समीहितसिद्धिस्त्वचिरेण कालेन ॥ १०१ इति श्रीपण्डिताचार्य श्रीनरेन्द्रसेनविरचिते चतुर्विधध्यानं मोक्षतत्त्वनिरूपणं एकादशोऽध्यायः। (जिनशासन-भक्तिसे इच्छित सिद्धि होती है। )- जो पुरुष मनसे, वचनसे और शरीरसेभी जिनशासनमें भक्ति करता है उसे शीघ्रही इच्छित सिद्धि होती है॥ १०१ ॥ श्री पण्डितनरेन्द्रसेनाचार्य-विरचित सिद्धान्तसार-संग्रहमें मोक्षतत्त्वका निरूपण करनेवाला ग्यारहवा अध्याय समाप्त हुआ। १ आ. इति सिद्धान्तसारसङग्रहे आचार्य श्रीनरेन्द्रसेनविरचिते एकादशोऽध्यायः समाप्तः। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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