Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen  Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 310
________________ -१२. ३१) सिद्धान्तसारः (२८३ संयतासंयतानां तद्वालपण्डितसंज्ञिकम् । बालं चासंयतस्येह' सम्यग्दृष्टेनिवेदितम् ॥ २८ मिथ्यादृष्टिजनानां तत्पञ्चमं बालबालकम् । 'जायतेऽनन्तदुष्टैकमरणं भवधारिणाम् ॥ २९ लघुपञ्चाक्षरोच्चारकालेनैव तु कर्मणाम् । क्षयं कृत्वा शिवं याति केवलो तदिहादिमम् ॥३० समाराधयतोऽनर्घ सद्रत्नत्रयमुत्तमम् । सत्समाधियुतस्येह साधोप॑त्युः स पण्डितः ॥ ३१ मरणका नाम पण्डितमरण है । स्पष्टीकरण- ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तपोंमें जिनको सीमातीत पाण्डित्य प्राप्त हुआ है, उनको पण्डित कहते हैं अर्थात् अनंतज्ञान, अनंत दर्शन, अनंतसुख और अनंतशक्ति आदिक प्राप्त हुए, वे केवलिजिन पण्डितपण्डित कहे जाते हैं। इनसे भिन्न जो हैं उनको पण्डित कहते है अर्थात् प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत आदिसे लेकर क्षीणकषाय गुणस्थानतक जो साधु- मुनि हैं उनको ' पण्डित ' कहते हैं । पण्डा- रत्नत्रय- परिणत बुद्धिको पण्डा कहते हैं, ऐसी बुद्धि जिसको उत्पन्न हुई है वह पण्डित है । मुनियोंमें रत्नत्रय- पण्डितबुद्धि होनेसे वे पण्डित कहे जाते हैं ॥ २७ ॥ ( बालपण्डित मरण और बालमरणका विवेचन । )- संयतासंयतके मरणको बालपण्डित मरण कहते हैं । श्रावक जो अणुव्रतके धारक हैं अर्थात् दर्शनादि- प्रतिमाओंके धारक हैं उनको संयतासंयत कहते हैं । स्थावर जीवके घातरूप असंयमसे निवृत्त न होनेसे वे श्रावक बाल कहे जाते हैं। तथा त्रसजीवोंका संरक्षणरूपसंयम और रत्नत्रयमें तत्पर होनेसे पण्डित कहे जाते हैं । असंयम होनेसे बाल व रत्नत्रय होनेसे पण्डित ऐसे दो गुणोंके धारक होनेसे बालपण्डित कहे जाते हैं। दर्शनज्ञान ये दो जिनमें है परंतु जो सर्वथा चारित्ररहित हैं ऐसे असंयतसम्यग्दृष्टीके मरणको बालमरण कहते हैं । २८ ।। ( बालबालमरणका स्वरूप। )- मिथ्यादृष्टियोंके मरणको बालबालमरण कहते हैं। संसारको धारण करनेवाले जीवोंको यह पांचवा मरण अनन्त दोषोंसे भरा हुआ और जिसका साम्य कोई मरण नहीं कर सकेगा ऐसा मरण है। इस मरणसे मरनेवाला जीव सम्यक्त्वसेभी रहित है, दर्शन और चारित्र तो उसे है ही नहीं। इसलिये मिथ्यादृष्टिको बालबाल कहते हैं।। २९।। ( पण्डितपंडित मरणवाला मुक्त होता है। )- अ, इ, उ, ऋ, ल ऐसे पांच हस्वस्वरोंका उच्चार करने में जितना समय लगता है उतने में अघातिकर्मोका क्षय करके केवली भगवान मोक्षको जाते हैं वह मरण पहिला मरण है ॥ ३० ॥ ( पंडितमरणका खुलासा )- उत्तम, प्रशंसनीय और अमूल्य ऐसे रत्नत्रयकी आराधना करनेवाला उत्तम ध्यान युक्त-धर्मध्यान और शुक्लध्यान युक्त ऐसे साधुका जो मरण वह पंडितमरण है ॥ ३१ ॥ १ आ. वा. २ आ. दुःखैककारणं भवधारणम् ३ आ. नैष स्वकर्मणां ४ आ. ऽनयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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