Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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२४४)
सिद्धान्तसारः
(-१०. २७
आचाम्ले क्षपणे वापि नीरसे वापि शोधिते । अन्तराये तथैवासौ यो विरम्य' विधीयते ॥ २७ एकैकेषु च पञ्चैषु सर्वेष्वपगतेषु च ॥ भिन्नमासः स एव स्याद्विभिन्नबहुकल्मषः ॥ २८ उपवासस्त्रिभिः प्रोक्तमपि कल्याणकं बुधैः । एकैकेनाथवा तेषु निरन्तरकृतेषु तत् ॥ २९ नवधा सुनमस्कारस्तनू त्सविनिर्मितः । एतै दशभिस्तावदुपवासः प्रजायते ॥३० पादोनं काञ्जिकाहारात्पादकः पुरुमण्डलात् । अधं निविकृतेस्तस्य स्यादेकस्थानतस्तथा ॥ ३१ मनोवाक्कायगुप्तः सन्नष्टोत्तरशतं जपेत् । योऽपराजितमाप्नोति स भव्यः प्रोषधं फलम् ॥ ३२ दोषःकालस्तथा क्षेत्रं छेदो भुक्तिः पुमानिति । षोढा विधिर्भवत्यत्र ज्ञातव्यः स मनीषिभिः ॥३३
कल्याणक प्रायश्चित्त कुछ कालके अन्तरसे किया जाता है तब विद्वान् उस प्रायश्चित्तको गुरुमास प्रायश्चित्त कहते हैं ।। २६ ।।।
पांच आचाम्ल, पांच उपवास, पांच नीरस भोजन, इनमेंसे कुछ कम यदि किया जाता है अथवा पांचोंमेंसे एक एक कम यदि किया जाय तब उसको भिन्नमास कहते हैं। यह भिन्न मास प्रायश्चित्त बहुत पापोंका नाश करता है ।। २७-२८ ॥
तीन उपवास करनेपरभी कल्याण प्रायश्चित्त होता है ऐसा विद्वानोंने कहा है । अथवा एक आचाम्लभोजन, एक नीरस भोजन, एक एकस्थान, एक पुरुमंडल और एक उपवास निरन्तर करनेपरभी वह कल्याण नामक प्रायश्चित्त होता है ॥ २९ ॥
____एक कायोत्सर्गमें नौ पंचनमस्कार होते हैं और एकसौ आठ वार पंचनमस्कारोंका जप करनेसे उपवास होता है। अर्थात् बारह कायोत्सर्गोंका एक उपवास कहा है ।। ३० ॥
___काञ्जिकाहार करनेका जो फल है वह फल एकासी बार पंचनमस्कारका जप करनेसे प्राप्त होता हैं। तथा एकस्थानसे जो फल मिलता है वह चौवन बार पंचनमस्कारका जप करनेसे प्राप्त होता है ॥ ३१ ॥
( एक प्रोषधका फल ।)- मन, वचन और शरीरकी एकाग्रता कर जो भव्य एकसौ आठ बार पंचनमस्कार मंत्रका जप करता है उसे एक प्रोषध अर्थात् एक उपवासका फल प्राप्त होता है। अर्थात् एक प्रोषधसे जितनी कर्मनिर्जरा होती है उतनी कर्मनिर्जरा १०८ बार पंच मंत्र जपनेसे प्राप्त होती है ॥ ३२॥
इस प्रायश्चित्तके प्रकरणमें जो छह बातें विद्वानोंको जानना आवश्यक है वे इस प्रकार हैं- दोष, काल, क्षेत्र, छेद-प्रायश्चित्त, भुक्ति और पुरुष-दोषी। दोष-अपराध, काल ग्रीष्मादिकाल, क्षेत्र-जलप्राय, शुष्क, साधारण ऐसे देश, छेद-प्रायश्चित्त, भक्ति-प्रायश्चित्त
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१ आ. विश्रम्य २ आ. नाथवैतेषु ३ आ. स्तत्तत्सर्गो ४ आ. विनिर्मितः ५ आ. स तैः ६ आ. पादोनः ७ आ. प्रौषधं ८ आ. दोषं कालं तथा क्षेत्र
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