Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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सिद्धान्तसारः
(८. ५२
चत्वारिशन्मतास्तावदष्टाधिकतया पुनः । विभागास्तादृशा एव विमानं भास्करस्य च ॥ ५२ अन्यदागमतः सर्व ज्ञातव्यं चन्द्रसूर्ययोः । दिडमात्रं तदिदं किञ्चिन्निर्लज्जेन मयाकथि ॥ ५३ भावनव्यन्तराणां च विमानाः' कथिताः पुरा । आयुरुत्सेधसौख्यादि ज्ञातव्यं पुरतः पुनः॥ ५४ आदौ मध्ये तथान्ते च द्वादशाष्टौ चतुष्टयम् । योजनानि तु विस्तीर्णा चत्वारिंशत्तथोच्चका॥५५ या मेरुचूलिका रम्या तस्या उपरि शोभनं । ऋज्वाख्यं सद्विमानं स्यात्केशाग्रान्तरितं महत् ॥५६ तद्विमानं विद्यायादौ मेरु मध्ये विधाय च । सौधर्मंशानयोर्युग्मं विचित्राश्चर्यकारकम् ॥५७ सार्धंकरज्जुमानं यन्मेरुशैलात्सुशोभनम् । आकाशक्षेत्रमस्त्येव तत्पर्यन्तं विभाव्यते ॥ ५८ सार्थंकरज्जुपर्यन्तं ततःस्यायुगलं पुनः । सनत्कुमारमाहेन्द्रस्वर्गयोनिगदन्ति तत् ॥ ५९
विमान सोलह हजार देवोंके द्वारा धारण किये जाते हैं । इस विमानके पूर्वादिक दिशाओंमें चार चार हजार देव सिंह, हाथी, अश्व और बैलके रूप धारण करके इस विमानको धारण करते हैं।
(सूर्योके विमानोंका प्रमाण )- सूर्योके विमान योजनके इकसठ भागोंमसे अडतालीस भागप्रमाणके हैं । योजनके इकसठ भागों में से छप्पन भाग चन्द्र के विमानके हैं । और सूर्य के विमानके विभाग ऊपर कहे हैं।
स्पष्टीकरण- सूर्यके विमान तप्तसुवर्णके समान हैं, लोहित्तमणिमय और अर्धगोलकाकार हैं। सोलह हजार देव क्रमसे विमानके पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर भागमें सिंह, हाथी, बैल और अश्वके रूप धारण करके विमानको वहते हैं । ५२ ॥
चन्द्र और सूर्यके विषयमें इतर अनेक बातें आगमसे जानने योग्य हैं। यहां निर्लज्ज होकर अर्थात् अज्ञान होकरभी मैने थोडासा कहा है ।। ५३ ।।
भावनदेव और व्यन्तरदेवोंके विमान पूर्व में कहे हैं। आयुष्य, शरीरकी ऊंचाई, सुख आदिकोंका वर्णन आगे ज्ञातव्य हैं ॥ ५४ ।।
(ऋजुविमान मेरुचूलिकाके ऊपर है।)- जो मेरुपर्वतकी रम्य चूलिका चालीस योजनोंकी ऊंची है । तथा वह आरंभमें बारह योजन विस्तीर्ण है, मध्यमें आठ योजन विस्तीर्ण है और अन्तमें चार योजन विस्तीर्ण है । इस चूलिकाके ऊपर महान् ऋजुनामक विमान है और वह चूलिकासे एक केशाग्र अन्तरपर है ।। ५५-५६ ॥
(सौधर्म ऐशान आदिक स्वर्गयुगलोंका वर्णन ।)- ऋजुविमानको आरंभ कर और मेरुको मध्यमें कर सौधर्मेशान स्वर्गके युगल विचित्र और आश्चर्यकारक हैं। मेरुपर्वतसे ऊपर जो डेड रज्जुपर्यन्त आकाशक्षेत्र है वहांतक सौधर्मशान-स्वर्गका युगल है । इसके ऊपर डेड रज्जुपर्यन्त आकाशक्षेत्रमें सानत्कुमार माहेन्द्र स्वर्गका युगल है, ऐसा आचार्य कहते हैं ॥ ५७-५९ ॥
१ आ. निवासाः २ आ. न्नता ३ आ. ऋत्वाख्यम् ४ आ. मेरुमध्ये ५ आ. शुभसंयुतम्
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