Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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सिद्धान्तसारः
(८. ७१
तस्या उपरि यत्तावद्वातत्रयमदीर्यते । तनवातेऽत्र तिष्ठन्ति सिद्धा लोकाग्रवतिनः॥७१ भावनानां जघन्येन जीवितं कथितं जिनः । दशवर्षसहस्राणि सागरोपममुत्तमम् ॥ ७२ तत्रासुरकुमाराणां सागरोपममीर्यते । पल्यत्रयं तु नागानां सार्धपल्यद्वयं पुनः ॥ ७३ सुपर्णेषु मतं द्वीपकुमारेषु द्वयं तथा । सार्धपल्यं च शेषेषु परमायुरिति ध्रुवम् ॥ ७४ दशवर्षसहस्राणि व्यन्तराणां जघन्यकम् । साधिकं पल्यमुत्कृष्टं जीवितं विविधात्मनाम् ॥ ७५ उत्कर्षतो मतं चन्द्र जीवितं लक्षसंयतम । पल्यमेकं सहस्रेण सहितं तद्धि भास्करे ॥ ७६ सौधर्मशानयोरायः साधिकं पल्यमीरितम् । जघन्यं हि तदुत्कृष्टं साधिकं सागरद्वयम् ॥ ७७ सानत्कुमारमाहेन्द्रयुगले जीवितं परम् । साधिकं कथितं जैनः सागरोपमसप्तकम् ॥ ७८ ब्रह्मब्रह्मोत्तरे युग्मे साधिका दशसागराः । गिरन्ति गरिमायुक्ता गुरवो गुरुसंयमाः ॥ ७९ ततो लान्तवकापिष्ठयुग्मे जीवितमुत्तमम् । चतुर्दशाधिकाः किञ्चित्तथैते सागरोपमाः ॥ ८० आयुः शुक्रमहाशुक्रयुगले परमं मतं । सागराः साधिकाः किञ्चित्षोडश क्षिप्तकल्मषैः ॥ ८१
पैंतालीस लाख योजन विस्तारवाली है। इसके ऊपर जो तीन वातवलय कहे गये हैं उनमें अन्तिम तनुवातमें - लोकके अग्रभागमें सिद्धपरमेष्ठी विराजमान हैं ।। ६९-७१ ॥
( भवनवासी और व्यन्तरोंके आयुका वर्णन । )- भवनवासी देवोंका जघन्य आयुष्य जिनोंने दस हजार वर्षोका और उत्कृष्ट आयुष्य सागरोपम वर्षोंका कहा है । असुरकुमारोंकी आयु सागरोपम है । नागकुमारोंकी आयु तीन पल्योंकी है । ढाई पल्योपम आयु सुपर्णकुमारोंकी है। द्वीपकुमारोंकी आयु दो पल्योपमकी है तथा शेष छह कुमारोंकी आयु डेढ पल्योपमकी है। ऐसा भवनवासियोंके उत्कृष्ट आयुका क्रम कहा है ।। ७२-७४ ॥
अनेक स्वभाव धारण करनेवाले व्यंतरोंकी जघन्य आयु दस हजार वर्षोंकी है और उत्कृष्ट आयु एक पल्य और कुछ अधिक कही है । ७५ ॥
(चंद्रसूर्योकी उत्कृष्ट आयु । )- चन्द्रकी उत्कृष्ट आयु एक पल्य और एक लाख वर्षकी है । तथा सूर्यकी आयु एक पल्य और एक हजार वर्षों की है ॥ ७६ ॥
(सौधर्मादि अच्युतान्त देवोंकी जघन्य और उत्कृष्ट आयु । )- सौधर्म और ऐशान स्वर्गके देवोंकी जघन्य आयु एक पल्य और कुछ अधिक है । और उत्कृष्ट आयु दो सागर
और कुछ अधिक है । सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्गके देवोंकी उत्कृष्ट आयु सात सागरोपम वर्षोकी और कुछ अधिक है ऐसा जैनोंने-गणधरादिकोंने कहा है । ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर स्वर्गके देवोंकी उत्कृष्ट आयु दस सागरसे कुछ अधिक है ऐसा महान् संयम धारण करनेवाले प्रभावशाली गुरु कहते हैं । तदनन्तर लान्तव और कापिष्ठ स्वर्गमें देवोंकी उत्तम आयु चौदह सागरोंसे कुछ अधिक कही है । जिन्होंने पापविनाश किया है ऐसे महापुरुषोंने शुक्र और महाशुक्र स्वर्गके देवोंकी उत्तम आयु सोलह सागरोंसे कुछ अधिक कही है ॥ ७७-८१ ॥
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