Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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- ५. १४२ )
सिद्धान्तसारः
( १३५
कोटिलक्षाः कुलान्याहुः सप्ताष्टौ च तथा नव । तदष्टाविंशतिद्वित्रिचतुरिन्द्रियवीरुधाम् ॥ १३४ कोटिलक्षाः कुलानां हि सममर्द्धत्रयोदश । द्वादशापि दश प्रोक्ता जन्मिनां जितकल्मषैः ॥ १३५ जलजानां तथा वीनां चतुःपदयुतात्मनाम् ' । उरसा सर्पतां तावन्नवैवैते यथाक्रमम् ॥ १३६ कुलानि लक्षकोटिनां देवनैरयिकनृणां । षड्विंशतिस्तथा पंचविंशतिश्च चतुर्दश ।। १३७ कुलानां लक्षकोटिनां सर्वसंख्या जिनेश्वरैः । अर्द्धाधिकशतेनोक्ता नवतिर्नवसंयुता ॥ १३८ खरादिपृथिवीकायजीवानामायुरुत्तमम् । द्वाविंशतिसहस्राणां वर्षाणामृषिभिर्मतम् ॥ १३९ परेषां पृथिवीकायजीवानां पुनरुत्तमं । वर्षाणां द्वादशैवायुः सहस्राणि समन्ततः ॥ १४० सप्तवर्षसहस्राणि जीवन्त्यष्कायवर्तिनः । जीवः प्रकर्षतः सर्वे विचित्राश्चर्यकारिणः ॥ १४१ तेजः कायभृतः सर्वे जीवन्त्युत्तममानतः । दिनत्रयं त्रयाधीशाः कथयन्ति जिनेश्वराः ।। १४२
द्वन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और वनस्पति इन जीवोंकी कुलसंख्या क्रमसे सात कोटि लक्ष, आठ कोटि लक्ष, नौ कोटि लक्ष और अठाईस कोटि लक्ष कही है ।। १३४ ॥
जलचर प्राणियोंकी कुलसंख्या साडेबारह लक्ष कोटि है । पक्षियोंकी कुलसंख्या बारह लक्ष कोटि है । चतुष्पद प्राणियोंकी कुलसंख्या दस लक्ष कोटि है और छाती से चलनेवाले साप आदि प्राणियोंकी कुलसंख्या नौ कोटि लक्ष है ।। १३५-१३६ ।।
( देव, नारकी और मनुष्योंकी कुल संख्या । ) - देवोंकी कुलसंख्या छब्बीस कोटि लक्ष है । नारकियोंकी कुलसंख्या पच्चीस कोटि लक्ष है और मनुष्योंकी कुलसंख्या चौदह कोटि लक्ष हैं ।। १३७ ।।
संपूर्ण जीवोंकी कुल संख्याका प्रमाण एकसौ साठ निन्याणबै लक्ष कोटि है ऐसा जिनेश्वरोंने कहा है | कुल-शरीर के भेदको कारणभूत नोकर्मवर्गणाके भेदको कुल कहते हैं ।। १३८ ॥ ( जीवों की आयुका वर्णन । ) - ऋषियोंने खरपृथिवीकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु बावीस हजार वर्षोंकी कही है ।। १३९ ॥
शुद्ध पृथिवीकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु बारह हजार वर्षोंकी है ।। १४० ॥ जलकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु सात हजार वर्षों की है । सब जलकायिक जीव विचित्र आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले होते है ॥ १४१ ॥
संपूर्ण तेजः कायिक जीवोंकी उत्कृष्ट आयु तीन दिनोंकी है ऐसे रत्नत्रय के स्वामी जिनेश्वर कहते हैं ।। १४२ ।।
१ आ. चतुःपादवतामतः,
२ आ. कुलानि कुलानां इति श्लोकद्वयं ३ परंतु गोम्मटसारमे संपूर्ण जीवोंकी कुलसंख्या एक कोडाकोडी सत्ताणचे लक्ष तथा पचास हजार कोटि कही है । ४ आ. भांपुस्तके नास्ति
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