Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५. १२४) सिद्धान्तसारः
(१३३ अचित्तयोनिजाः सर्वे जीवा ये नारकामराः। विमिश्रयोनयोऽनन्ता गर्भजाः प्राणिनो मताः॥११८ सम्मूच्छिनः परे सर्वे सर्वयोनिभवाः पुनः । भवन्ति भविनो नित्यं विचित्राकारधारिणः ॥११९ नानाकारविकाराणां मनुष्याणां चतुर्दश । योनिलक्षा मतास्तज्ज्ञनिदर्शनशालिभिः ॥ १२० दुष्टकर्मभवानेकदुःखदौर्गत्यशालिनाम् । नारकाणां हि ते लक्षाश्चत्वारो गदिता जिनैः ॥ १२१ देवानां दिव्यवृत्तीनां विचित्राकारधारिणाम्। लक्षाश्चत्वार इत्येवं योनीनां योजिता बुधैः॥ १२२ वधबंधक्षुधातृष्णाशीतवातादिगोचरम् । तिरश्चां भुजतां दुःखं लक्षाश्चत्वार एव ते ॥१२३ विकलेन्द्रियजीवानां भूरिपापपरात्मनाम् । सर्वेषां योनयो लक्षाः षडेव परिकीर्तिताः॥ १२४
( तत्तद्योनिज जीवोंका वर्णन । )- जो नारकी और देव हैं, वे जीव अचित्तयोनियोंसे उत्पन्न होते हैं । अर्थात् उनके उत्पत्तिस्थान उपपादप्रदेश हैं और वे अचित्त-अचेतन हैं। जो गर्भज जीव हैं वे मिश्रयोनिके हैं; क्योंकि उनके माताके उदर में शुक्र और श्रोणित-रक्त अचित्त हैं और माताके आत्मासे मिश्रण होनेसे वह योनिस्थान सचित्ताचित्त है। किंवा जिस माताके उदरमें शुक्र शोणित पडा है वह उदरस्थान सचित्त है । इसलिये गर्भज जीव सचित्ताचित्त योनिज हैं। इन जीवोंसे भिन्न अर्थात् सर्व सम्मच्छिन जीव तीन प्रकारके योनियोंसे उत्पन्न होते हैं।। अर्थात् कोई सचित्त योनिके हैं, कोई अचित्त योनिके हैं और कोई सचित्ताचित्त योनिके हैं। साधारण शरीरवाले सम्मच्छिन जीव सचित्त हैं क्योंकि वे अन्योन्यके आश्रयसे उत्पन्न होते हैं। कोई सम्मूर्छनज जीव अचित्त योनिसे उत्पन्न होते हैं। तथा कोई मिश्रयोनिके होते हैं। इस प्रकार इस संसारमें जीव नाना आकारोंको धारण करनेवाले हैं ।। ११८-११९ ॥
जो सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानसे शोभते हैं, ऐसे तज्ज्ञ लोगोंने नाना आकार और विकारोंको धारण करनेवाले मनुष्योंकी चौदह लक्ष योनियाँ मानी हैं ॥ १२० ॥
अशुभनाम, अशुभगोत्र, असातवेदनीयादि कर्मोंके उदयसे अनेक दुःख दारिद्यसे युक्त ऐसे नारकियोंकी चार लक्ष योनियाँ हैं ऐसा जिनेश्वरोंने कहा है ॥ १२१ ॥
अणिमामहिमादिक ऋद्धियोंके धारक तथा नाना प्रकारके आकारोंको धारण करनेवाले देवोंकी योनिसंख्या विद्वानोंने चार लक्ष कही है ।। १२२ ॥
वध, बंध, भूख, प्यास, ठंडी, हवा, उष्णता इत्यादिसे उत्पन्न हुआ दुःख भोगनेवाले तिर्यंचोंकी चार लक्ष योनियाँ हैं ।। १२३ ।।
तीव्र पापयुक्त जिनका आत्मा है ऐसे संपूर्ण विकलेन्द्रिय जीवोंकी छह लक्ष योनियाँ कही है ॥ १२४ ॥
१ आ. ताः
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