Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४. १४७)
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विनोपकरणैस्तेन जगत्केभ्यो विधीयते । पृथिव्यादिभिरित्येवं मिथ्या तेषामभावतः ॥ १४१ भावे पुर्नावरोधादिस्तस्य पृष्ठं न मुञ्चति । येन दुष्टमिदं सृष्टेरदुष्टं नोपपद्यते ॥ १४२ न द्रव्याणि च योगस्य सम्मतानीह तत्त्वतः । तानि चेत्सर्वदा सन्ति सन्ति शम्भुः करोति किम् ॥ १४३ शरीरारम्भकैरेभिः पृथिव्यादिभिरङ्गिनः । योजयत्यथ' कर्ता स्यादिति चेत्संमतं मतम् ॥ १४४ एषापि भारती तेषामशेषाणामशेषतः । नैव युक्तिमियत्येव धर्माधर्मविघाततः ॥ १४५ स्वत एवं करोत्येतदन्येन प्रेरितोऽथवा । उताशावशतो वापि क्रोडया यन्त्रिताशयः ॥ १४६ स्वतः करोति चेद्विश्वं दुःखिनः किं करोत्यसौ । तत्कार्ये प्रत्यवायः स्यात्तक्रियाजनितो महान् ॥ १४७
सिद्धान्तसारः
है उसकोही जगत् कहना चाहिये । वह पहिलेभी अर्थात् इच्छाके पूर्व में भी था तो पूर्वमेंही जगत् था । अतः जगन्निर्माणकी इच्छा होना व्यर्थ है । ये पृथिव्यादिक है, तो पुनः रचनेका विरोध है । उनकी रचना पहलेसेही पुनः रचनाकी आवश्यकता नहीं रही । ऐसा दोष ईश्वर के पीठपर लादा जाता है । वह विरोध दोष ईश्वरकी पीठ नहीं छोडेगा । जिससे ईश्वरकी सृष्टिका दोष दोषही रहेगा वह अदोष नहीं होगा ।। १४१ - १४२ ।।
योगके मतमें द्रव्यपदार्थ सिद्ध नहीं होता है । क्योंकि 'द्रव्यत्वयोगाद् द्रव्यम्' द्रव्यत्वका संबंध होनेसे द्रव्य है ऐसा माननेपर द्रव्य और द्रव्यत्व ये दो चीजें अलग ठहरी । यदि उन दोनोंकी स्वतंत्रता सिद्ध होगी तो द्रव्यत्वके सम्बन्धसे पूर्व में भी द्रव्य होनेसे द्रव्यत्वका सम्बन्ध द्रव्यके साथ करना व्यर्थ हैं । इसलिये द्रव्यपदार्थ योगके मत में सिद्ध नहीं होता । यदि वे द्रव्यपदार्थ हैं तो ight अब क्या करना बाकी रहा हैं ? ।। १४३ ॥
शरीरको निर्माण करनेवाले पृथिव्यादिकोंसे प्राणियोंको ईश्वर जोड देता है, जिससे ईश्वर कर्ता होता है और यह मत संमत है ऐसा आप समझेंगे तो यहभी आपका विवेचन योग्य नहीं है । तथा जो शरीरोंको उत्पन्न करनेवाले पृथिव्यादिकोंसे ईश्वरकेद्वारा सब प्राणी जोडे जायेंगे तो यह जोड़ना युक्तिसंगत नहीं होगा । इसमें धर्म और अधर्मका अर्थात् पुण्य और पापका नाश होगा | क्योंकि कौन जीव पापी है और कौन जीव पुण्यवान् है इसका कुछ विचार न करके बुरे भले चाहे जैसे शरीरारंभक पृथिव्यादिकोंसे ईश्वर प्राणियोंको जोड देगा ।। १४४ - १४५ ॥
ईश्वर स्वतः जगत्को उत्पन्न करता है ? अथवा अन्यसे प्रेरित होकर उत्पन्न करता है ? अथवा कुछ आशावश होकर जगत्को निर्माण करता है ? या क्रीडासे नियंत्रित चित्त होकर जगत्को बनाता है? इन बातोंपर अब क्रमसे विचार करना ठीक होगा ॥ १४६ ॥
यदि ईश्वर स्वतः स्वतंत्र रहकर जगत् बनाता है तो यह दुःखी लोगों को क्यों उत्पन्न करता है ? दुःखियों को उत्पन्न करनेसे दुःख देनेकी क्रियासे ईश्वरको महान् पापबंध होता होगा ।
१ आ. योजयन्नेव २ आ. आशाया वशतो
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