Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-५.६८)
(१२३
पृथ्वी कायिकजीवेन यच्छरीरं विर्वाजतम् । पृथ्वीकायस्तदेव स्यान्मृतमानुषकायवत् ॥ ६२ पृथ्वीकायः स यस्यास्ति स पृथ्वीकायिको मतः । इति सर्वेऽपि गोयन्ते परेऽप्यप्कायिकादयः ॥ ६३ सूक्ष्मबादरभेदेन पर्याप्ततरतोऽपि वा । तथा साधरणत्वाच्च साधारणतया पुनः ॥ ६४ सर्वेऽप्यमी प्रजायन्ते स्थावराः स्थितिशालिनः । प्रत्येकं षट्प्रकाराश्च विचित्राकारसंयुताः ॥ ६५ तत्र त्रसाश्च विज्ञेयाः द्वीन्द्रियादय इत्यमी । सर्वेऽपि प्राणिनः प्राणैः सहिता हि भवन्ति च ॥ ६६ इन्द्रियायुर्मनोवाचा निश्वासोच्छ्वासविग्रहाः । दशप्राणा भवन्त्येते प्राणिप्राणित्वहेतवः ॥ ६७ चतुः प्राणैश्च जीवन्ति शरीरानायुरिन्द्रियैः । सर्वेऽप्येकेन्द्रिया जीवा बहुधा भेदशालिनः ॥ ६८
सिद्धान्तसारः
पृथ्वीकायिक जीवने जो शरीर छोड दिया उस शरीरको पृथिवीकाय कहते है । जैसे मृत मनुष्यका शरीर । वैसे पृथ्वीजीव जिसमेंसे निकल गया उसे पृथ्वीकाय कहते ।। ६२ ।। पृथ्वी जिसका शरीर है वह जीव पृथिवीकायिक है । जल जिसका शरीर है वह जलकायिक है । इत्यादि ।। ६३ ।। ]
( जीवसमासकी अपेक्षासे स्थावरोंके भेद ) - ये पृथिव्यादि-स्थावर जीव सूक्ष्म और बादर ऐसे भेदसे दो दो प्रकारके होते है । पुनः उनके प्रत्येक और साधारण ऐसे दो दो भेद होते हैं । ये सब स्थावर स्थितिशाली हैं । इनके प्रत्येकके पर्याप्त और अपर्याप्त भेद होनेसे छह प्रकार होते हैं और वे सब विचित्राकारवाले हैं । अर्थात् सूक्ष्मपर्याप्त पृथ्वी, बादरपर्याप्त पृथ्वी, सूक्ष्म अपर्याप्त पृथ्वी, बादर अपर्याप्त पृथ्वी । ऐसेही जलादिके चार चार भेद होते हैं । वनस्पतिके साधारण और प्रत्येक मिलकर छह भेद होते हैं ।। ६४-६५ ।।
द्वन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीवोंको त्रस कहते हैं। जिनको स्पर्शनेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय हैं, ऐसे शंखादि जीवोंको द्वीन्द्रिय कहते हैं । स्पर्शन, रसना और नाक जिनके होती हैं वे त्रीन्द्रिय जीव हैं । जैसे चींटी आदिक जीव है । स्पर्शन, रसना, नाक और आंखे जिनको होती हैं ऐसे भ्रमर पतंगादिक जीव चतुरिन्द्रिय हैं । स्पर्शन, रसना, नाक, आंखे तथा कान ऐसी पांच इंद्रियां जिनको हैं वे जीव पंचेन्द्रिय हैं जैसे मनुष्य, गौ, भैंस, कौवा, सर्प, देव, नारकी । इन सबको अर्थात् त्रस और स्थावर जीवोंको प्राणी कहते हैं; क्योंकि ये यथायोग्य प्राणोंसे सहित होते हैं । प्राणोंके दस भेद हैं, और वे प्राणित्वके हेतु हैं, अर्थात् उनसे प्राणी जीते हैं । वे प्राण इस प्रकार हैं- पांच इंद्रियां, आयु, मन, वचन, शरीर और श्वासोच्छ्वास ऐसे द प्राण हैं ।। ६६-६७ ॥
( एकेन्द्रियादि जीवोंके प्राणोंका वर्णन । ) - एकेन्द्रिय जीव चार प्राणोंसे जीते हैं । शरीरप्राण, श्वासोच्छ्वास, आयु और स्पर्शनेन्द्रिय ऐसे चार प्राण उनको होते हैं । सर्व एकेन्द्रिय जीव अनेक भेदोंसे युक्त हैं । जैसे पृथ्वी के मृत्तिका, वालुका, शर्करादिक छब्बीस भेद हैं । जलके हिमबिन्दु, शुद्धजल, घनजल आदि भेद हैं । ज्वाला, अंगार आदि अग्निके भेद हैं । महावात, घनवात, तनुवात, मण्डली वायु आदिक वायुके भेद हैं । वनस्पतिके मूल, अग्र, पर्व, बीजरुह आदिक भेद हैं ।। ६८ ।।
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