Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-४. १६२)
सिद्धान्तसारः
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परमेष्ठी परञ्ज्योतिः परमात्मा पराशयः । सर्वज्ञः सादिमुक्तश्च जिन एवावशिष्यते ॥१५५ ये वदन्ति च कैवल्ये केवली कवलाशनः । न तच्चारु यतो मिथ्या वैपरीत्यविजृम्भितम् ॥१५६ स चानिष्टोऽपि मूढात्मा ह्यनन्तादिचतुष्टये । व्याघातो जायतेऽनन्तसुखस्य विरहाद्यतः ॥१५७ क्षुत्तृट्पीडावशादेष सुखाभावस्तु जायते । प्रतीकारार्थमस्या हि गृह्णन्त्याहारमङ्गिनः ॥ १५८ सुखाद्यर्थानुकूल्यत्वाद्धोजनादेः कथं पुनः । सुखाभावो भवेत्तस्माद्योगिनोऽप्यविरोधतः ॥ १५९ दृश्यते ह्यस्मदादीनां भोजनादौ कृते सति । उत्पन्नं च सुखं वीर्य तदृते हानिरेव वा ॥ १६० एतत्सर्व महामोहपिशाचवशवर्तिनाम् । जल्पितं युक्तिशून्यत्वाद्वितण्डामर्हति क्षणात् ॥ १६१ विषयेभ्यः प्रजायन्ते ह्यस्मदादिसुखादयः । कादाचित्कतया तस्मान्नैवं भगवतः क्वचित् ॥ १६२
है और सर्व प्रकारोंसे वह विश्वको देखता है। वह परमेष्ठी, परंज्योति, परमात्मा, पराशयवेदी, सर्वज्ञ और सादिमुक्त होता है। ऐसे गुणोंका धारक जिनही होता है। अन्य हरिहरादिकोंमें ये गुण नहीं है। वह जिन इन्द्रादिपूजित पदको धारण करता है, इसलिये परमेष्ठी है। उसकी ज्ञानरूपी ज्योति उत्कृष्ट अनुपम होती है । वह सर्वश्रेष्ठ आत्मा होनेसे परमात्मा है और उसका आशय-अभिप्राय रागद्वेषरहित शुद्धोपयोगरूप है। वह सर्वज्ञ है और कर्मोको नष्ट करके मुक्त हुआ है। अतः सादि मुक्त है ॥ १५४-१५५ ॥
केवली कैवल्य अवस्थामें अर्थात् अरिहन्तकी अवस्थामें कवलाहार-मासाहार लेते हैं ऐसा श्वेताम्बर जैन कहते हैं, परंतु वह उनका कथन युक्तियुक्त नहीं है; क्योंकि यह उनका कथन विपरीत मिथ्यात्वका विलासरूप है। उन मूढोंका अभिप्राय आगमसूत्रसेभी अनिष्ट है। आहार ग्रहण करनेसे अनंत चतुष्टयमें व्याघात उत्पन्न होता है, क्योंकि अनंतसुखका आहारसे नाश होता है। अर्थात् अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतशक्ति और अनंतसुख इनको अनंतचतुष्टय कहते है। इनमेंसे अनंतसुख कवलाहारसे नष्ट होता है। भूख, प्यासकी पीडाके वश होनेसे सुख नष्ट होता है। उस भूख और प्यासकी पीडा मिटानेके लिये प्राणी आहार लेते हैं ॥१५६-१५८ ॥
__ (आहारग्रहणसे सुख होता है ऐसा श्वेताम्बरोंका कथन)- भोजन करनेसे और पानी पीनेसे सख और शक्ति प्राप्त होती है परंत आप दिगंबर जैन लोक आहारपानसे अभाव होता है ऐसा कहते हैं। यह कथन आपका कैसा योग्य समझा जायेगा? योगी आहारसे व पानसे वही सुख होगा उसका अभाव नहीं होगा ।। १५९ ॥
हम तुम जब भोजन करते हैं तब अपने में सुख और शक्ति उत्पन्न हुई है ऐसा अनुभव करते हैं। परंतु आहार पानके अभावमें सुख और शक्तिकी हानिका अनुभव हमें आता है ।। १६० ॥
(दिगंबर जैन कहते है)- महामोहरूप पिशाचके वश जो हुए हैं ऐसे श्वेताम्बरोंका यह सर्व कहना है । इस कथनमें यह युक्ति नहीं होनेसे तत्काल वितण्डाके योग्य है ॥ १६१ ।।
आपके और हम लोगोंके सुखशक्ति आदिक गुण पंचेन्द्रियके विषय सेवन करनेसे होते हैं और वे कादाचित्क होते हैं अर्थात् कुछ कालतक आहारसे सुख और शक्ति प्राप्त होती है। ऐसी भगवान् जिनेश्वरमें कादाचित्क सुख और शक्ति नहीं है ॥ १६२ ॥
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