Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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२८)
सिद्धान्तसारः
(२. ७१
तीर्थं प्रति मुनीनां च जितघोरोपसर्गिणाम् । अनुत्तरोपपादानां दशानां हि प्ररूपकम् ॥ ७१ चत्वारिंशच्च चत्वारः सहस्रा नवतिस्तथा । लक्षाणां द्वयधिका चैतदनुत्तरदशं मतम् ॥ ७२ नष्टमुष्टयादिकादीनां प्रश्नानां परतो भुवाम् । सर्वेषां हि तदर्थानां सूचकं शुचिवर्तिनाम् ॥७३ लक्षाणां नवतिस्त्रीणि सहस्राश्चापि षोडश । पदानां पूतवृत्तीनां प्रश्नव्याकरणं स्मृतम् ॥७४ सुकृतानां दुष्कृतानां कर्मणां पाकसूचकम् । सर्वं विपाकसूत्रं तु कथितं तथ्यवेदिभिः ॥ ७५ कोट्येकपदसंख्यं तदशीतिश्चतुरुत्तरा । लक्षाणां च मतं मान्यमथिताशेषकल्मषः ॥ ७६ कोटीचतुष्टयं तावल्लक्षाः पंचदशाधिकाः। द्विसहस्रः पदानां च संख्या चैकादशाङ्गिका ॥ ७७ द्वादशाङगस्य भेदा ये प्रोक्ताः पञ्च विधानतः। परिकर्मादयस्तेषां पदसङख्या निगद्यते ॥ ७८ सहस्रैः पञ्चभिः साकं लक्षाः षट्त्रिंशदायताः । चन्द्रप्रज्ञप्तिरुद्गीता चन्द्रायुर्गतिसूचिका ॥७९
____ अनुत्तरौपपादिक दशांगमें प्रत्येक तीर्थकरके समयमें चार प्रकारके देव, मनुष्य, पशु और अचेतनकृत दारुण उपसर्ग सहन कर दश दश मनि अन्त समयमें समाधिके द्वारा अपने प्राणोंका त्याग कर विजय आदि पांच अनुत्तर विमानोंमें उत्पन्न हुए उनका सविस्तर वर्णन है। इस अंगकी पदसंख्या बानवे लाख चवालीस हजार है ॥ ७१-७२ ॥
प्रश्नव्याकरण नामक दसवे अंगमें नष्ट-मुष्टयादिकके पवित्र प्रश्न और उनके सर्व अर्थोंका कथन हैं । इसमें पवित्र पदसंख्या तिरानबे लक्ष सोलह हजार है । दूतवाक्य, नष्ट, मष्टि, चिन्ता आदि अनेक प्रकारके प्रश्नोंके अनुसार तीन कालसंबंधी धनधान्यादिका लाभालाभ, सुखदुःख, जीवनमरण, जय-पराजय आदि फलोंका वर्णन हैं । और प्रश्नोंके अनुसार आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निर्वेजनी इन चार कथाओंका वर्णन है ।। ७३-७४ ।।
विपाकसूत्र नामक ग्यारहवे अंगमें सत्यस्वरूप जाननेवालोंने पुण्य और पापोंके फलोंका वर्णन किया है अर्थात् द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके अनुसार शुभाशुभ कर्मोंकी तीव्र मंद, मध्य आदि अनेक प्रकारकी अनुभागशक्तिके फलदानरूप विपाकका वर्णन है । इस अंगकी पदसंख्या एक कोटि चौरासी लाख की है ऐसा संपूर्ण पापोंका नाश करनेवाले मुनियोंने कहा है । पूर्वोक्त ग्यारह अंगोंकी पदसंख्या चार कोटी पंद्रह लक्ष दो हजार की है ।। ७५-७७ ॥
( परिकर्मादिकोंकी पदसंख्या )- द्वादशाङ्गके अर्थात् बारहवे दृष्टिवाद नामक अङ्गके जो आगमके अनुसार परिकर्मादिक पांच भेद कहे हैं उनकी पदसंख्या अब हम कहते हैं ।। ७८ ॥
चन्द्रप्रज्ञप्तिकी पदसंख्या छत्तीस लक्ष पांच हजार है और इसमें चन्द्रकी आयु और गतिका वर्णन है अर्थात् चन्द्रमासंबंधी विमान, आयु, परिवार, ऋद्धि, गमन, हानि, वृद्धि, पूर्णग्रहण, अर्द्धग्रहण, चतुर्थांश ग्रहण आदिका वर्णन है ।। ७९ ।।
१. आ. शौचवर्तिनाम्
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