Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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-२. ७०)
सिद्धान्तसारः
(२७
धर्माधर्मकजीवानां द्रव्यतो गगनस्य च । जम्बूद्वीपादिभावानां कालचक्रस्य सूचकम् ॥ ६३ समवायाभिधं पूतं क्षायिकादिनिरूपणात् । चतुःषष्टिसहस्रकलक्षसंख्यापदप्रमम् ॥ ६४ प्रश्नानां हि सहस्राणि षष्टिर्या गणनायकैः । जीवः किमस्ति नास्तीति तीर्थेशपुरतः कृता॥६५ अष्टाविंशतिसहस्रर्लक्षद्वयपदप्रमा। व्याख्याप्रज्ञप्तिरित्येवं कथिता जिननायकैः ॥ ६६ षट्पञ्चाशत्सहस्राणि पञ्चलक्षपदप्रमा। कथा तीर्थकृदादीनां ज्ञातृधर्मकथाऽकथि ॥ ६७ सप्ततिश्च सहस्राणां लक्षकादशशोभनम् । श्रावकाध्ययनं नाम श्रावकाचारसूचकम् ॥ ६८ प्रतितीर्थ यतीनां च संसारान्तकृतां सताम् । घोरोपसर्गयुक्तानां दशानां प्रतिपादकम् ॥ ६९ त्रयोविंशतिलक्षाणि सहस्रास्त्वष्टविंशतिः । अन्तकृद्दशमाख्यातं पदानि पदकोविदः ॥ ७०
एक, दो, तीन आदि विकल्पोंके आश्रयसे वर्णन किया है । धर्म, अधर्म, आकाश, काल इन द्रव्योंकाभी एकादि विकल्पोंसे वर्णन किया है ।। ६२ ॥
चौथे समवायाङ्गकी पदसंख्या एक लाख चौसठ हजार है। इसमें द्रव्योंके सादृश्यका वर्णन द्रव्य, क्षेत्रादिकी अपेक्षासे है । जैसे धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, जीव और लोकाकाश इनकी प्रदेशसंख्या असंख्यात होनेसे प्रदेशसाम्य है। जंबूद्वीप सर्वार्थसिद्धि विमान और सप्तमनरकके बिल एक लक्ष योजन प्रमाण हैं । क्षायिक सम्यग्दर्शन, क्षायिक केवलज्ञान आदि अन्योन्य समान है। उत्सर्पिणी कालके समान अवसर्पिणी काल दश कोडाकोडी सागर प्रमाण है । इत्यादि वर्णन पवित्र समवायांगमें है ।। ६३-६४ ।।
व्याख्याप्रज्ञप्ति अंगमें पदसंख्या दो लाख अठाईस हजार है । इस अंगमें जीव है ? अथवा नहीं ? वक्तव्य है अथवा अवक्तव्य है ? नित्य है या अनित्य है, एक है या अनेक हैं इत्यादि साठ हजार प्रश्न गणधरोंने किये और तीर्थकरोंने उनके उत्तर दिये । ऐसा इस अंगका जिन-नायकोंने वर्णन किया है ॥ ६५-६६ ।।
ज्ञातृधर्म-कथामें पांच लक्ष छप्पन हजार पद संख्या है। इस अंगमें जीवादि वस्तुओंका स्वभाव, तीर्थकरोंका माहात्म्य, तीर्थकरोंकी दिव्यध्वनिका समय तथा माहात्म्य, उत्तम क्षमादि दशधर्म, तथा रत्नत्रयधर्मका स्वरूप बताया है । तथा तीर्थकर, गणधर, इन्द्र आदिकी कथा उपकथाओंका वर्णन है ॥ ६७ ॥
श्रावकाध्ययन नामक सातवे अंगकी सुंदरपद-संख्या ग्यारह लाख सत्तर हजार है। इसमें श्रावकाचारका वर्णन है अर्थात् श्रावकोंके सम्यग्दर्शनादिक ग्यारह प्रतिमासंबंधी व्रत, गुण, शील, आचार, तथा दूसरे क्रियाकाण्ड और उनके मंत्रादिकोंका सविस्तर वर्णन है ॥ ६८ ॥
अन्तकृद्दशांगमें तेईस लाख अठाईस हजार पदसंख्या है । इसमें प्रत्येक तीर्थकरके समयमें जो दश दश मुनि चार प्रकारके घोरोपसर्ग सहन कर संसारके अन्तको प्राप्त हुए उनका वर्णन है ॥ ६९-७० ॥
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