Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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सिद्धान्तसारः
(१. ९१
आद्यामाराधनां तां विशदतरगुणग्रामयुक्तां सुगुप्तो । दृष्टि सदृष्टिहृष्टः कलयति
___कलिताशेषतत्त्वैकसत्त्वः । योऽसौ भुक्तोत्तमाङगस्फुरदमलरमारम्यलीलामलोलः । कल्याणानां क्षणेनावहति
सुरपतेरर्चनामचनीयः॥९१ इति श्रीसिद्धान्तसारसंग्रहे' आचार्यश्रीनरेन्द्रसेनविरचिते
सम्यग्दर्शननिरूपणे प्रथमः परिच्छेदः ॥१
जो मिथ्यात्वसे दूर रहा है, जो सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिसे आनंदित हुआ हैं, जिसने संपूर्ण जीवादि तत्त्वोंका मुख्य अस्तित्वगुण जाना हैं तथा उत्तम शरीरसे सुंदर और निर्मल ऐसी लक्ष्मीकी लीलाका भोग लिया हैं, जो निरिच्छ है ऐसा पुरुष अतिशय निर्मल संवेगादिकी गुणसमूहसे युक्त सम्यग्दर्शनाराधनाको धारण करता हैं। जिससे वह पूज्य महात्मा इन्द्रके द्वारा की जानेवाली पंचकल्याण पूजाको उत्सवके साथ धारण करता हैं ॥ ९१ ॥
आचार्य श्रीनरेन्द्रसेनविरचितसिद्धान्तसारसंग्रहमें सम्यग्दर्शनका
निरूपण करनेवाला पहिला परिच्छेद समाप्त हुआ।
१ आ. नरेन्द्रसेनविरचिते सिद्धान्तसारसंग्रहे प्रथमः परिच्छेदः ।
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