Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
View full book text
________________
( द्वितीयोऽध्यायः )
सम्यग्ज्ञानं परंज्योतिः स्वपरार्थावभासकम् । आत्मस्वभावमाभाव्यं भावयन्ति भवातिगाः ॥ १ बोध बुद्धिस्तथा ज्ञानं प्रमाणं प्रमितिः प्रमा । प्रकाशश्चेति नामानि मन्यन्ते मुनयोऽन्वयात् ॥२ ज्ञानं प्रमाणमित्येतन्मन्यन्ते न मनागपि । नैयायिकादयो दर्पात्सन्निकर्षादिवादिनः ॥ ३ सूक्ष्मान्तरितदूरार्थाः सन्निकर्षादिवादिनाम् । अप्रमेया भवन्त्येव तत्सम्बन्धाद्यभावतः ॥ ४
( दूसरा अध्याय )
( सम्यग्ज्ञानका लक्षण ) - सम्यग्ज्ञान यह आत्माका स्वभाव है । यह उत्कृष्ट प्रकाशस्वरूप है, अर्थात् इससे अपना स्वरूप जानता है तथा परपदार्थका स्वरूप जानता है । जिन्होंने संसारका नाश किया है ऐसे सिद्धपरमेष्ठी अनुभवन - योग्य इस ज्ञानकी भावना करते हैं अर्थात् वे सतत केवलज्ञानमय हैं । उनका ज्ञान प्रतिसमय अनन्तानन्त पदार्थोको तथा उनके त्रिकालवर्ती अनंतानन्त पर्यायोंका साथ जानता है । सम्यग्ज्ञानको बोध, बुद्धि, ज्ञान, प्रमाण, प्रमिति, प्रमा, प्रकाश ऐसे नाम मुनि मानते हैं । क्योंकि सबमें अर्थकी अन्वयता ( सार्थकता ) है अर्थात् ये सब नाम ज्ञानके एकार्थवाचक है । ज्ञानकेही ये नाम हैं । दीपक जैसा अपनेको और घटादि पदार्थोंको प्रकाशित करता है वैसा ज्ञानभी स्व और परस्वरूप जानता है ॥ १-२ ॥
नैयायिकादिक दर्पसे सन्निकर्षादिकोंको प्रमाण मानते हैं । उन्होंने ' ज्ञान प्रमाण है ऐसा अल्पतयाभी नहीं माना है । तात्पर्य - नैयायिक और योग सन्निकर्षको प्रमाण मानते हैं । सांख्य इन्द्रियवृत्तिको प्रमाण मानते हैं । मीमांसक ज्ञातृव्यापारको प्रमाण मानते हैं । बौद्ध निर्विकल्पज्ञानको प्रमाण मानते हैं । इस प्रकार सन्निकर्षादिकोंको प्रमाण माननेवाले नैयायिकादिकोंने ज्ञानको प्रमाण नहीं माना है । परंतु सन्निकर्षादिक बिना ज्ञानकेभी होते हैं और वे अचेतन हैं । अचेतन पदार्थोंमें जाननेका सामर्थ्य नहीं है । अन्यथा घटपटादिक पदार्थ भी जमीन आदिके साथ सम्बध होने से सन्निकर्ष होनेसे जानेंगे । परंतु उनमें वह जाननेका धर्म सन्निकर्षसे भी उत्पन्न हुआ नहीं दीखता । तथा सन्निकर्ष जगतके सभी पदार्थोंके साथ नहीं होता है, क्योंकि सूक्ष्मादि पदार्थोंका इन्द्रियोंसे संबंध नहीं होता है ऐसा आचार्य कहते हैं ॥ ३॥
सन्निकर्षादिवदियोंने सूक्ष्मपदार्थ, अन्तरितपदार्थ, दूरपदार्थको अप्रमेय माना हैं क्योंकि उनके साथ इंद्रिय सम्बन्धादिकों का अभाव है ॥ ४ ॥
विशेष स्पष्टीकरण-आत्मा, इंन्द्रिय, मन और घटादिक पदार्थ इनका संबंध होनेसे ज्ञान उत्पन्न होता है । ऐसे संबंधको संनिकर्ष कहते हैं। जैसे घटमें रूपका ज्ञान होता है, यहां आत्माका मनसे संबंध होता है, मनका नेत्रेन्द्रियके साथ संबंध होता है और नेत्रका घटरूपके साथ संबंध होता है तब यह घट काला है, यह घट पीला है इत्यादि ज्ञान होता है । अतः ज्ञान सन्निकर्षसे
S. S. 3
म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org