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कर्मरुप वर्गणानां दळीयां खेरवे छे, पण जो निश्रयनये कर्मनुं ग्रहण जीव करतो होय तो कोइ काले कर्मथकी रहीत थाय नहीं. आत्मा राग अने द्वेषे परद्रव्यमांपरिणमे छे, रागद्वेष रूप मोहनी अशुद्धताए पुद्गल परमाणुआना स्कंधोने ग्रहण करे छे अने मनुष्य देवता नारकी तथा तिर्यंचना शरीर रुप खंध मते नीपजावे छे. ते खंध स्थिति प्रमाणे रहे छे, वळी पाछा खेरवे छे. वळी बीजा परमाणुआओने ग्रहण करी नवा शरीर रूप खंधने नीपजावे छे, केटलाएक पुद्गल परमाणुआ स्कंधरूपकर्मने ग्रहण करी पाछा खेरखे छे, एम व्यवहार नये अनादि काळथी जीव पुद्गलने परिणमनपणानी घटमाल समये समये चाली रही छे, शुभपु
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