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(३७) काय, पुद्गलास्तिकाय, काल, ए पांच द्रव्य अकारण छे, ए वात पण घणी रीते मळती छे, माटे बहुश्रुत कहे ते खरं. आगम सार ग्रंथकर्त्तानी ध्यानमां तो एम आवे छे के जीव द्रव्य कारण, अने पांच द्रव्य, अकारण एम संभवे छे.
निश्चयनये छ ए द्रव्य पोते पोताना स्वरुपनां की छे, अने व्यवहार नये अनेक नयनी अपेक्षाए जोता तो एक जीव द्रव्य कर्त्ता, अने पांच द्रव्य अकर्ता जाणवां. ते आवी रीते व्यवहार नयना छ भेद छे. त्यां प्रथम शुद्धव्यवहारनये जीव शुद्ध निर्मल, कर्म थकी रहीत एवं पोतार्नु स्वरुप नीपजावईं तेनो कर्त्ता जाणवो. एटले जे जे ( चालु ) गुणठाणानुं छोडवू, अने उपरना
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