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(१७०) समकित सहित ज्ञान, दर्शन, चारित्र ते मोक्षनुं कारण छे. ज्ञान सहित चारित्र न ग्रहण थइ शके, तो पण श्रेणिक राजानी पेठे सद्दहणा शुद्ध राखवी. जो समकित शुद्ध छे तो मोक्ष आसन्न छे. कडुं छे के दंसण भट्ठोभट्ठो,दंसण भट्ठोइनथ्थि निव्वाणं, सिज्झंति चरण रहिया, दसण रहिया न सिज्झंति॥१॥ वळी आगममां कह्यु छ के-जंसकतंकीरइ. अहवा नसक्कई तयंमिसद्दहणा; सद्दहमाणोजीवो,वच्चइ अयरामरंठाणं॥ अर्थ-रे जीव तुं करी शके तो कर अने जो न करी शके तोपण जेवो वीतराग भगवंते धर्म स्याद्वादरूप उपदेश्यो छे, ते प्रमाणे हृ
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