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(१७९) भावार्थ-राग द्वेषने जीतनारा जिन कहवाय छे ते नामजिन, स्थापनाजिन, द्रव्यजिन, अने भावजिन एम चार प्रकारे जिन छे. ते जिनेश्वरोमांज देवबुद्धि राखवी तथा भव (संसार) थकी पोताना आत्माने मुक्त करवाने इच्छनार जे मुमुक्षु पुरुषो तेमांज गुरुपणानी बुद्धि राखवी, तेमज दुर्गतिमां पडता जीवोने धारण करनार जिनेश्वर प्रणीत धर्ममां धर्मपणानी श्रद्धा राखवी तेने सम्यग्दर्शन कहे छे. ते सम्यक्त्व स्वभावथी अथवा गुरुना उपदेशथी एम बे प्रकारे प्राप्त थाय छे.
स्वभावथी एटले गुरु विगेरेना उपदेशनी अपेक्षा रहित स्वभावथी (क्षयोपशमथी)
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