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(२०४) जिणेहिं पण्णत्तं जिनेश्वरे जेप्ररूप्यु छे तेज सत्य छे. एवी सामान्यरुचिने द्रव्यसम्यक्त्व कहे छे. नयानिक्षेप प्रमाण परिष्कृत विस्तार रुचिर्नु भावसम्यक्त्व रूपे स्फुटपणुं छे. भावज्ञान श्रद्धा परिशुद्धने भावसम्यक्त्व जाणवू. जे ज्ञानी नवतच्चाने नयनिक्षेप प्रमाण पूर्वक समजी शके छ तेने भावसम्यक्त्व प्रकटे छे. सातनय चार निक्षेप अने चार प्रमाणोथी षड्द्रव्य-नवतत्त्व आदिनुं विस्तार पूर्वक स्वरूप अवबोधी जे तत्त्वोनो निश्चय करवो तेने भावसम्यक्त्व कथे छे.
व्यवहारसम्यक्त्व-ज्ञानश्रद्धानचरणैः सप्तषष्ठिभेदशीलनं च व्यवहारसम्यक्त्वम्
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