Book Title: Shaddravya Vichar Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 250
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३५) श्वेतांबर वा दिगंबर, बुद्ध अथवा अथवा वेदांती, वैदिक धर्मी, मुसल्मान, स्त्रीस्ति वगेरे गये ते होय; परंतु समभावे आत्माने भावी समभावे निश्चयतः परिणमी समभावी थाय छे ते मोक्ष पामे छे. ते कर्मावरणनो क्षय करी सम्यक्त्वादिने प्राप्त करी परिपूर्ण गुणमयी बनी सिद्ध बुद्ध परमात्मा थाय छे. सर्व सिद्धतिनो सार ए छे के सम्यक्त्वादिनी प्राप्ति करी आत्माने समभावे भाववो. समभावे परिणमतां कषायनी मन्दताए अने क्षीणता निसर्ग सम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय छे अने सकल कर्मने निवारी परिपूर्ण शुद्ध बुद्र बने छे. समभावे परिणमतां सहजानन्दयोगे सम्मक्त्वनी प्राप्तिनो अनुभव करी शकाय छ. www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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