Book Title: Shaddravya Vichar Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 249
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३४) वी. गीतार्थ आत्मज्ञानी ध्यानी सद्गुरुनां चरणकमल सेववाथी सम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय छे. उपर प्रमाणे सम्यक्त्वना जे जे भेदो कह्या छे, तेनी प्राप्ति माटे प्रयत्न करवो एज उत्तम पुरुषोनुं कर्तव्य छे. आगमोनो नय निक्षेप प्रमाणोथी अनुभव करीने राग द्वेष रहित आत्माना समभाव स्वरूपमां परिणमनुं एज परमसाध्य कर्तव्य छे. समभावे परिणमतां आत्मा केवल ज्ञान प्राप्त करी मोक्ष पामे छे. सेयंवरो वा आसंवरो वा. बुद्धो वा अहव अन्नो वा समभावभावी अप्पा लहइ मुकं न संदेहो ॥ www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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