Book Title: Shaddravya Vichar Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 244
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२२९) आरोही सिद्ध थाय छे. एक जीव अने नाना जीवनी अपेक्षार सम्यक्त्वनो उपयोग जघन्यथी अने उत्कृपृथी अन्तर्मुहूर्तो जाणवो अने क्षायोपशम रूप तेनी लब्धिता एक जीवने जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्टतो नृभव अधिक छासठ सागरोपमनी होय छे. तेना उपर सम्यकत्वथी अप्रच्युत जीव सिद्ध थाय छे. नाना जीवाने आश्रयी तो सर्वकाल जाणवो. www.kobatirth.org कोइ सम्यक्त्वनो त्याग करे छते पुनः तेना आवरणना क्षयोपशमथी अन्तर्मुहूर्त्त मात्रमा पुनः सम्यक्त्वने पामे छे माटे सम्यक्त्वनुं अन्तर् जघन्यथीतों अन्तर्मुहूर्त छे अने आशातनाप्रचुर जीवनी अपेक्षाए तो उ For Private And Personal Use Only

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