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(२२७) साथे छठी नरक सुधी कोइ उप्तन्न थाय छे अने कार्मग्रन्थिक मतमां तो वैमानिकथकी अन्यत्र उत्पन्न थतो नथी. तेन गृहीतेनेत्युक्तम्॥ __प्रवचनसारोद्धारमा प्राप्त समकीति जीव तेना त्यागथी कर्मग्रन्थ मत प्रमाणे उत्कृष्ट स्थितिवाली कर्मप्रकृतियोने बांधे छे अने सैद्धान्तिकमताभिप्रायथी भिन्न ग्रन्थीने उत्कृष्ट स्थितिबंध थतो नथी. ___ ग्रन्थि भेद करनारने अने उपशम श्रेणिना प्रारंभकने उपशम सम्यक्त्व थाय छे.
क्षायिकसम्यक्त्वदृष्टि तृतीयभवमां चतुर्थ भवमां वा ते भवमां सिद्ध थाय छे. पूर्व भवतुं आयुष्य बांधीने जे क्षायिक स
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