Book Title: Shaddravya Vichar Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 242
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२२७) साथे छठी नरक सुधी कोइ उप्तन्न थाय छे अने कार्मग्रन्थिक मतमां तो वैमानिकथकी अन्यत्र उत्पन्न थतो नथी. तेन गृहीतेनेत्युक्तम्॥ __प्रवचनसारोद्धारमा प्राप्त समकीति जीव तेना त्यागथी कर्मग्रन्थ मत प्रमाणे उत्कृष्ट स्थितिवाली कर्मप्रकृतियोने बांधे छे अने सैद्धान्तिकमताभिप्रायथी भिन्न ग्रन्थीने उत्कृष्ट स्थितिबंध थतो नथी. ___ ग्रन्थि भेद करनारने अने उपशम श्रेणिना प्रारंभकने उपशम सम्यक्त्व थाय छे. क्षायिकसम्यक्त्वदृष्टि तृतीयभवमां चतुर्थ भवमां वा ते भवमां सिद्ध थाय छे. पूर्व भवतुं आयुष्य बांधीने जे क्षायिक स www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254