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(२२१)
क्षायोपशमसम्यग्दृष्टि थाय छे. ते प्रथम क्षयोपशम सम्यक्त्वने पामे छे. अन्य तो एम कहे छे के – “ अन्यस्तु यथाप्रवृत्ति करणत्रयक्रमेणान्तरकरणे उपशमसम्यक्त्वं लभते पुञ्जत्रयं त्वसौ न करोत्येव ततश्चौपशमिकसम्यक्त्वाच्च्युतोऽवश्यं मिथ्यात्वमेव याति यथामवृत्तिकरणादि त्रणना अनुक्रमे अन्तर्करणमां उपशम सम्यक्त्व पामे छे अने जीव, त्रण पुंजने नथी करतो ततः पश्चात् उपशम सम्यक्त्वथी चवेलो अवश्य मिथ्यात्वने पामेछे.
प्रथम सम्यक्त्व पामे छे तो कोइ जीव सम्यक्त्वनी साथे देशविरति वा सर्वविरति - पशुं पामे छे. सास्वादन सम्यक्त्वी कंइ पण
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