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(१७७) ने चार प्रमाण तथा सातनये विस्तारथी जाणवानी रुचिने विस्ताररुचि कहे थे.
८ क्रियारुचि-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, विनय, वैयावच्च, समिति, गुप्ति, चरण सित्तरी अने करण सित्तरी सहित, आत्मधर्म साथे जे रुचि तेने क्रियारुचि कहे छे.
९ संक्षेपरुचि-अर्थज्ञान थोडं कहे छते घणुं जाणीने कुमतिमां पडे नहीं, ते संक्षेपरुचि जाणवी.
१० धर्मरुचि-पांच अस्तिकायनु स्वरूप जाणवानी तथा श्रुतज्ञाननो स्वभाव अंतरंग सत्ता सद्दहवानी रुचिने धर्मरुचि कहे छे. समकितना सडशठ बोल जाणी, आदरे, ते जीव समकिती कहेवाय छे. हे भव्यो! पूर्व पुण्ययोगे मनुष्य जन्म पाम्या
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