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(१७६) ली आज्ञानुं मान्यपणुं तेने आज्ञारुचि कहे छे.
४ सूत्ररुचि-वर्तमानकालमां विद्यमान, पिस्तालीश आगमादि मूलसूत्र, तथा नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका ए पंचांगीनां वचन माने ते जीव सूत्ररुचिमंत कहेवाय छे. आगम भणवानी तथा सांभळवानी घणी चाहना होय ते सूत्ररुचि जाणवी.
५ बीजरुचि-गुरु मुखथी एक पदनो अर्थ सांभलीने अनेक पद सद्दहे. ते बीजरुचि .
६अभिगमरुचि-सूत्र-सिद्धांत अर्थ सहित जाणवानी इच्छाने अने अर्थ विचार सांळवानी घणी चाहनाने अभिगमरुचि कहे छे.
७विस्ताररुचि-पद्रव्यना गुणपर्याय
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