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(१७५)
अच्छमि जइवमेवइजो सोउपएसो तओनाम. भावार्थ - ज्ञानथी छ द्रव्य जाणीने आदरवा योग्य होय ते आदरे, अने त्यागवा योग्य त्याग करे. एवो जे ते नय उपदेश जाणवो.
हवे समकितनी दशरुचि कहे छे. १ निसर्गरुचि-ते निश्चयनये जीवादि नवतत्त्व जाणे. आस्रवने त्यागे अने संवरने सेवे, वीतरागनां कहेला छ द्रव्यने द्रव्य, क्षेत्र, काळ, अने भावथी जाणे, नामादि चार निक्षेपा जिनाज्ञा पूर्वक पोतानी बुद्धिथी जाणे, सदहे. वीतरागे कहेला भाव सत्य छे, एम जाणवुं ते सम्यक्त्व छे.
२ उपदेशरुचि - नवतत्त्व तथा छ द्रव्यने गुरु उपदेशथी जाणीने सदहे ते. ३ आज्ञारुचि - वीतराग भगवंते कहे
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