Book Title: Shaddravya Vichar Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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(१८१)
सम्यक्त्व प्राप्त करनार त्रणकरण करे छे.
त्रण करणनुं स्वरूप. (१) अनादिकाळथी चाल्या आवता संसाररूप सागरमां पडेलो प्राणी, भव्यत्वना परिपाकयोगे पर्वतपरथी नदीमां पडेला पथ्थरना न्याये (ते पथ्थर अथडातो कुटातो गोळ थाय छे तेम) अनाभोगपणाथी यथा प्रवृत्तिकरण करे छे. अध्यवसाय विशेष रूप ते यथा प्रवृत्तिकरण छे. तेवडे एक आयुकर्म विना "आयुवर्जित साते कर्मनीजी सागर कोडाकोडी हीणरे, स्थिति पढम करणेकरीजी; वीर्य अपूरव मोगर लीधरे ॥ समकित० ॥ १॥"" बीजा ज्ञानावरणीयादि सात कर्मोने पल्योपमना असंख्यातमा भागे
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