Book Title: Shaddravya Vichar Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 196
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८१) सम्यक्त्व प्राप्त करनार त्रणकरण करे छे. त्रण करणनुं स्वरूप. (१) अनादिकाळथी चाल्या आवता संसाररूप सागरमां पडेलो प्राणी, भव्यत्वना परिपाकयोगे पर्वतपरथी नदीमां पडेला पथ्थरना न्याये (ते पथ्थर अथडातो कुटातो गोळ थाय छे तेम) अनाभोगपणाथी यथा प्रवृत्तिकरण करे छे. अध्यवसाय विशेष रूप ते यथा प्रवृत्तिकरण छे. तेवडे एक आयुकर्म विना "आयुवर्जित साते कर्मनीजी सागर कोडाकोडी हीणरे, स्थिति पढम करणेकरीजी; वीर्य अपूरव मोगर लीधरे ॥ समकित० ॥ १॥"" बीजा ज्ञानावरणीयादि सात कर्मोने पल्योपमना असंख्यातमा भागे www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254