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(१४८) दारु सारा माणसने पण वेभान बनावी दे छे अने तेना गुणनो नाश करे छे, तेम कर्मे मारा गुणनो नाश कर्यो छे.
जेम कोइ पांच मित्रो हलीमळीने दररोज एकठा रहे छे अने एक बीजा साथे सारी रीते मित्रता राखे छ, परस्पर भलु वांछे छे. एक दिवसे पांच मित्रोए दारु पीधो, ते दारुनी नीशा खूब चढी, त्यारे ते परस्परस गाळो देवा लाग्या, अने एक बीजाने मारवा लाग्या, तेमां ए सर्व प्रपंचनुं कारण दारु छे. हवे ज्यारे ए दारुनो नीशो उतरी गयो त्यारे ते एक बीजा साथे हळीमळीने वातो करवा लाग्या, अने मित्रपणे वर्तवा लाग्या. तेम कर्मरूपी दारुना जुस्साथी सर्व जीवो एक बीजाने शत्रु दु
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