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(१६२)
रक आस्रव छे, माटे तेनाथी हे चेतन ! तुं दूर रहे, एम विचारखुं ते आस्रवभावना. आस्रवनो संबंध अभवी जीवने अनादि अनंत छे अने भवी जीवने अनादि सांत छे. ७ सम्वरभावना.
आस्रवनो जेनाथी रोध थाय तेने संवर कहे छे. जीव भावना भावे के इर्या - समिति, भाषासमिति, एषणासमिति इत्यादि पांचसमिति अने त्रणगुप्ति शुद्ध क्यारे पाळीश, अने बावीस परिसहने समभावे क्यारे सहीश. चेतन ! विषयाभिलाषथी मन पाहुं वाळ. क्षांत्यादि दशविध यतिधर्म शुद्ध पाळवा उद्यम कर के जेथी आत्महित थाय. यतिधर्म भवोभवनां दुःख टालनार छे, अने पंचमी गति जे मोक्ष तेने आपनार छे, धन्य
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