________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१६३) छे ते मुनिवरनेके के जे मान अने अपमानने चित्तमां सम गणे छे, सोनुं अने पाषाण चित्तमां समगणे छे, शत्रु मित्र उपर समदृष्टि राखे छे. पांच प्रकारनां चारित्र हे जीव तने क्यारे प्राप्त थशे. क्यारे एकाकी अप्रतिबद्ध विहार करीश. हे चेतन कोइपण जीव साथे वैर विरोध करीश नहीं. कारण के तेथी भवोभव दुःख पामीश. कपट कर नहीं. विश्वासघाती थाइश नहीं. संसाररूप समुद्रमां बुडाडनार नव प्रकारनो परिग्रह छे, तेनो त्याग कर ! मूर्छा-ममता राखवाथी जन्म मरण करवां पडे छे, तो साक्षात् नवविध परिग्रह केवां केवां दुःख पमाडशे, तेनो विचार करी परिग्रहनो त्याग कर. विषयने विष ( झेर ) सरखो जाण. एकेक इंद्रियना
www.kobatirth.org
For Private And Personal Use Only