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(१५१)
करे छे पण ए आत्मा होवाथी तारो मित्र छे. ता बगाडवा ए समर्थ नथी, एम मैत्री भावना भाववी.
सिंह जेम गोळी तरफ नहीं दोडतां गोळी मारनार कोण छे, एम विचारी मारनार सामो दोडे छे, तेम सिंह जेवा पुरुषोए दुःखना निमित्त कारण उपर दृष्टि नहीं देतां एम चितवनुं के ए दुःख थवानुं मूख्यए कारण कर्म छे. ज्ञानी कर्म दूर करवाना उपायो शोधे छे, जो में माठां वा सारां कर्म कर्या हशे, तो ते प्रमाणे मारे शुभाशुभ विपाक भोगववा पडशे. तेमां बीजो जीव मारुं भूंड करवा वा सारुं करवा समर्थ नथी. सर्व कर्मी दुःख थाय छे, माटे सिंह समान पुरुषो कर्मनो नाश थाय तेम वर्ते छे, पण
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