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(१५१) कोइ जीव उपर द्वेषभाव करता नथी.
मारा आत्माने जेम कर्म लाग्यांछे, तेम बीजाजीवोने पण कर्म लाग्यां छे पण आत्माओ • तो सर्वना सरखा छे. मारो आत्मा अरूपी,
अनंतज्ञान, अनन्त दर्शन अने अनन्त चारित्रनो भोक्ता छ. सर्वे जीवो गुणोवडे एक सरखा छीए.. सजातीय छीए. माटे सर्वे जीवो मारा मित्र छे. एवी भावनाने मैत्री भावना कहे छे. सर्व जीव उपर हितबुद्धि राखवी तेने मैत्री भावना कहे छे. __२ बीजी प्रमोद भावनाने कहे छे. गुणवंत अने ज्ञानादिक उपर राग तेने प्रमोद भावना कहे छे. धर्म करता जीवोने देखी खुशी थर्बु. ज्ञानवंत वैरागी मुनियोने देखी हर्ष धरवो, तथा दश दृष्टांते दोहीलो
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