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(१५९) खार्थनुं सगुं छे. ज्यारे आपणाथी बीजानो स्वार्थ सरतो नथी, त्यारे अन्योनुं आपणा उपरथी हेत उतरी जाय छे. हे चेतन ! तारी नजरे जे जे पदार्थो देखाय छे, ते ताराथी जुदा छे, अने तुं तेनाथी जुदो छे. माता, पिता, भाइ, बेन, स्त्री, पुत्र अने धन ए सर्व हे जीव ताराथी जुदुं छे, दृश्य शरीर छे ते पण हे चेतन! ताराथी जुदुं छे, लेश्या, योग, पांच संस्थान, पांच शरीर, तथा पांच संघयण, दस प्राण, अने पांच इन्द्रियो. ए सर्व हे चेतन! ताराथी जुदुं छे. तेनामा पोतापणुं मानीश नहीं. एम विचारवं ते अन्यत्व भावना जाणवी.
६ अशुचिभावना. शरीर अपवित्र मळ मूत्रनी खाण छे.
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