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(१४७)
जीव मारो दुश्मन नथी. सर्वे जीवना आत्माओ सिद्ध समान सत्ताए छे, अने कर्मना वशथी संसारमां सुखी दुःखी देखाय छे, ते सर्व जीव मारा सजातीय भाइ छे. एकेन्द्रियादिथी पञ्चेन्द्रिय सर्व जीव सजातीय छे. ते मारा बांधव छे. मित्र छे. तो तेमना उपर मारे द्वेष करवो न जोइए. तेमनुं भलुं चितवकुं. मारुं खराब करवाने कोइ समर्थ नथी, कर्मनोज ए प्रपंच छे, कर्म ए जड वस्तु छे. अचेतन छे, रूपी छे; कर्म वस्तु विजातीय छे, ए थकी मारे दूर रहे जोse अने एना प्रपंचमां फसावुं मारे योग्य नथी. अनादिकालथी कर्म जड वस्तु मने चार गतिमां भटकावे छे, अने मारुं पोतानुं स्वरूप ओळखवा देतुं नथी. जेम
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