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२ शरीरमां रह्यो जे आपणो जीव तेमां अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, अने साधुपणाना सर्व गुण छे एहवं जे ध्यान ते पिंडस्थ ध्यान कहीए. अथवा गुणीना गुणमध्ये एकत्वता उपयोग करवो ते पिंडस्थ ध्यान जाणवुं.
३ शरीरकर्मादि रूपमा रह्यो थको पण मारो आत्मा अरुपी अनंतगुणी छे, शरीरमां रहेला आत्मामां ध्यान वडे तल्लीन थबुं. ब्रह्मरन्धादि स्थानोमां ध्यान धरनुं, तेने पिंsस्थध्यान कहे छे. ए त्रण ध्यान धर्म ध्या नमां गणवां.
४ रूपातीत, निराकार, निःसंगी, निर्मल, संकल्प विकल्प रहित, अभेद, एक, शुद्ध, सत्तारूप, चिदानन्द, असङ्ग, अखंड,
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