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धन कीधा पछी शेष तेर प्रकृति खपावे. अकर्मी थाय, सर्व क्रियाथी रहित थाय ते समुछिन्न क्रियानिवृत्ति शुकलध्यान जाणवू. ए ध्यान ध्यावतां शेष कर्मप्रकृति दलखरणरूप क्रिया ऊछेदे. अवगाहना, देहमानमाथी बीजो भाग घटाडे, शरीरनो त्याग करी अहींथी सातराज ऊपर लोकने अंते जइ सिद्ध थाय. __हवे बीजां चार ध्यान कहे छे. (१) पदस्थ (२) पिंडस्थ ( ३ ) रूपस्थ (४) रूपातीत.
१ अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधु ए पंचपरमेष्ठीना गुणने संभारे, तेनुं हृदयमा ध्यान करे ते पदस्थ . ध्यान जाणवू.
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