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(७३) (२) संग्रहनय. सामान्यवस्तुसत्ता संग्राहक संग्रहःसद्विविधः सामान्य संग्रहः विशेषसंग्रहश्च सामान्य संग्रहो द्विविधः मूलतऊत्तरतश्च मूलतोड स्तित्वादिभेदतः षड्विध उत्तरतो जाति समुदायभेदरूपः जातितः गवि गोत्वं, घटे घटत्वं, वनस्पती वनस्पतित्वं, समुदायतो सहकारात्मके वने सहकारवनं, मनुष्यसमूहे मनुष्य वृंद, इत्यादि समुदायरुपः अथवा द्रव्यमिति सामान्य संग्रहः जीव इति विशेष संग्रहः ____ अर्थः सामान्ये करी मूल सर्व द्रव्य व्यापक नित्यत्वादिक सत्तापणे रह्या जे धर्म तेनो जे संग्रह करे तेने संग्रहनय कहे छे.
तेना बे भेद छे. १ एक सामान्य संग्रह २ बीजो विशेष संग्रह.
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