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(१३८)
छे, अने अनंत वीर्य गुण ते अंतराय कर्मे रोक्यो छे. एम आत्माना आठ गुण ते आठ कर्मे रोक्या छे. आ संसारमां भमतां थकां जे जीवने सुख दुःख थाय छे ते कर्मथी थाय छे मोटे पौद्गलिक सुख उत्पन्न थये छते खुशी थकुं नहि, अने दुःख आवे छते शोक करवो नहीं. कर्म स्वरूपनी प्रकृति, स्थिति, रस, अने प्रदेशनो बंध, उदय, उदीरणा, तथा सत्ता चितववानो जे एकाग्रतारूप परिणाम, तेने विपाकविचय धर्मध्यान कहे छे.
४ संस्थानविचय - चौद राजलोकनो स्वरूप आ प्रमाणे विचारे. आ लोक चउदराज प्रमाण ऊंचो छे. ते मध्ये सातराज अधोलोक छे. वचमां अढारसो योजन मनुव्य क्षेत्र तिर्छौ लोक छे. ते उपर कंइक उं
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