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चिदानंदमय मारो आत्मा छे. एवो एकाग्रता रुप जे ध्यान, तेने अपायविचय धर्मध्यान कहे छे.
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३ विपाकविचय- पूर्वोक्त विशेषण युक्त मारो जीव छे, पण अनादिकालथी कर्मनो संबंध आत्मानी साथै लोली भूतपणे छे तेथी जीव अनंतां दुःख भोगवे छे. कर्मवशे जीव दुःखी छे. कर्मनो विपाक चिंतवे जे - जीवनो ज्ञानगुण ते ज्ञानावरणीय कर्मे दाव्यो छे, जीवनो दर्शन गुण ते दर्शनावरणीय कर्मे दाब्यो छे, अव्यावाध गुण ते वेदनी कर्मे रोक्यो छे, क्षायिक गुण ते मोहनीय कर्मे रोक्यो छे. अक्षयस्थितिरूप जे गुण ते आयुष्य कर्मे दाब्यो छे. जीवनो अरूपी गुण ते नामकर्मे दाव्यो छे, अगुरु लघु गुण ते गोत्र कर्मे दाब्यो
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