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(८९) वर ध्याने, जिनप्रतिमा पूजतां लाभ थाय छे.
३ जेनुं नाम होय तथा आकार स्थापना गुण पण होय अने लक्षण पण होय पण आत्मानो उपयोग मळे नहीं, तेने द्रव्यनिक्षेपो जाणवी. अज्ञानी जीव ते जीव स्वरूपना उपयोग विना द्रव्यजीव छे. “ अणुवओगोदव्वम्" इति अनुयोगद्वार वचनात् वळी कह्यु छे के सिद्धांत वांचतां पुछतां पद, अक्षर, मात्रा, शुद्ध अर्थ करे छे, अने गुरु मुखे सद्दहे छे ते पण शुद्धनिश्चयनये पोतानी सत्ता ओलख्या विना सर्व द्रव्यनिक्षेपमांछे. जे भावविना द्रव्यपणुं छे ते पुण्यबंधनुं कारण छे पण मोक्षy कारण नथी. एदले जे धर्म करणीरूप कष्ट तपस्या करे छे, पण जीव, अजीव पदार्थनी सत्ता ओळखतो नथी,
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