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पण नथी. द्रढमहारी जेवा हिंसके पण ए शत्रुनो संग त्याग कर्यो त्यारे ते सुख पाम्यो. हे चेतन!!!तुं विचार के ए रौद्रध्यानरूप शत्रुना वशमां पडेलो मम्मण शेठ, तथा संभूम चक्रवर्ति नरकनां महा रौरव दुःख भोगवे छे, तेम छतां केम तुं कंइपण मनमा विचार करतो नथी. सूर्यने तथा चंद्रने जेम राहु घेरे छे, तेम तने रौद्रध्यानरूप राहु ग्रहण करे छे. जेम कोयला खावाथी काळ मुख थाय छे, तेम रौद्रध्यानथी समजवू. लाखो शत्रुओने जीतनाराओ पण रौद्रध्यानरूप शत्रुने जीती शकता नथी, एवं अशुभ, आत्मघाती, मलीन, रौद्रध्यान छे. एनो खंत पूर्वक त्याग करवो, एज हितकारी शिक्षण छ. ए वे ध्याननो त्याग करवो जो
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