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(१३४) इए. त्यारे हवे कोनो स्वीकार करवो तेवी आकांक्षा थतां धर्म ध्याननो स्वीकार करवो, एम शास्त्रकार जणावे छे.
३ धर्मध्यान. दुर्गतिमांपडता प्राणियोने धारण करी राखे अर्थात् दुर्गतिमां पडवा दे नहीं अने उच्च गति आपे तेने सामान्य प्रकारे धर्मध्यान कहे छे.
१ आज्ञाविचय २ अपायविचय ३ विपाकविचय ४ संस्थानविचय एवं धर्मध्यानना चार पाया छे. ____ आज्ञाविचय-वीतराग देवनी आज्ञा साची करी सदहे, भगवंते छ द्रव्यनुं स्वरूप नयममाण निक्षेपा सहित सिद्ध स्वरूप तथा
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