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(१२६) वता थात, वा अमुक थात, चक्रवर्ति थात, राजा थात अने अमुकनो नाश करनार थात एवी आगला भवनी जे वाञ्छा तेने अग्रशौच कहे छे. ___आर्तध्यानना चार पाया थकी जीव तिर्यचनी गतिमां जाय छे. माटे भव्य प्राणियोए ए ध्यानथकी दूर रहेg, आर्तध्यान रूप शत्रुनो मनमां वास करवा देवाथी आस्मानी अनंतिऋद्धिनो नाश थाय छे. आत्मा, खरेखर आर्तध्यानथी अनादिकाळथी रजळ्यो अने हजी जो एनो संग नहीं मूके तो घणा भव भटकशे. जे आतध्यानने शत्रुरूप जाणे छे, ते तेनाथी दूर रहेवा अंतःकरणथी महेनत करे छे. संसारमा मूंडनी पेठे रच्या पच्या थका दुर्ध्यान ध्यावे छे, ते पामरो अ
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