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(९३) भिरुढनय कहे छे. ते वस्तुना एक पदार्थवाच्य नामांतरे भिन्नार्थ जाणे. भिन्नभिन्न शब्दनो भिन्नभिन्न अर्थ माने जेम जीव, चेतन, आत्मा, एनो एक अर्थ करी न सदहे, परंतु भिन्न अर्थ करे तेने समभिरुढ नयकहे छ. ए नय एक नय ओछी वस्तुने पूरेपूरी कहे छे. समभिरूढनय, तेरमे गुणठाणे वर्तता केवळीने सिद्ध कहे छे.
७ एवंभूतनय. जे वस्तु पोताने गुणे संपूर्ण छे अने पोतानी क्रिया करे छे, तेने जे वस्तु करी बोलावे छे तेने एवं भूतनय कहे छे. मोक्षस्थानकमां जे जीव पहोंच्या तेने ते सिद्ध कहे छे. पाणीथी भरेलो स्वीना माथा उपर आवतो जल धरण क्रिया करतो जे घटतो होय छ तेने एवं भूतनय घट कहे छे.
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