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सर्व द्रव्यनी स्वरुप शुद्ध मवृत्ति - जेम धर्मास्तिकायनी चलण सहायता तथा अधमस्तिकायनी स्थिति सहायता तथा जीवनी ज्ञायकता इत्यादिकने वस्तुगत शुद्ध व्यवहार कहीए.
द्रव्यनो उत्सर्ग नीपजवा माटे जे रत्नत्रयिनी शुद्धता गुणस्थाने श्रेणि आरोहणरुप ते साधन शुद्ध व्यवहार कहीए.
अशुद्ध व्यवहारना वे भेद छे. १ सद्भूत व्यवहार २ असद्भूत व्यवहार. तेमां जे क्षेत्रे अवस्थाने अभेदे रह्या जे ज्ञानादिगुण तेने परस्पर भेदे कहेवा ते सद्भूत व्यवहार. तथा हुं क्रोधी हुं हुं मानी छं, अथवा दे वता छु, मनुष्य छं, इत्यादि देवतापणे ते हेतुपणे परिणमतां ग्रह्मां जे देवगति विपाकी
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